लेख

एक दलित की बारात

अरे ओ घुरहू……. पंडित हरिकेश पाण्डेय ने जोर से चिल्लाते हुए आवाज लगाई।
घुरहु जो सुबह सुबह फावड़ा कंधे पर रख अपनी ही मस्ती में अपने खेतो की तरफ जा रहा था ,उसने आवाज की दिशा में मुड़ के देखा तो पाण्डेय जी थोड़ी दूर पर खड़े थे ।
पाण्डेय जी को देखते ही घुरहू ने दोनों हाथ जोड़े लिए और सर को झुकाते हुए कहा ” पाय लागू पण्डे जी ”

“हम्म बड़ी मस्ती में जा रहा है ? क्या बात है ? ” पाण्डेय जी ने रौबदार आवाज में पूछा
” जी ,पाण्डे जी … उ हमरे बड़का बेटवा चंद्रवा का बिआह पक्का हो गइल ,अगले महीनवा में ” घुरहु ने मुस्कुराते हुए कहा ।

” अच्छा, वही चंद्रवा जो बम्बई गया है कमाने क्या? पाण्डेय जी ने पूछा
” हाँ जी , उहै चंद्रवा …. बम्बई में कौनो फैक्ट्री में सुपरवाइजर है । अब बिआह लायक होइ गइल बाय और कमाई भी ठीक बाय ओकर ” घुरहु ने कहा

पाण्डेय जी ने कहा ” ठीक है , चमरौटी में सबन के लड़के धीरे धीरे बाहर निकल रहें और शहर में काम धाम कर के अच्छा पैसा काम रहें है , अइसन ही चली तो यंहा खेतो में काम कौन करेगा?
– पाण्डेय जी ने थोडा क्रोध दिखाते हुए कहा

घुरहु सहम गया और हाथ जोड़ते हुए कहने लगा ” पांड़े जी, हम हैं न मजदूरी करने के लिए , अब लडिके बाले थोडा पढ़ लिख लेहल त दुइ पैसा कमाए चली गइलन ”
“चल ठीक है , अब जा यंहा से ” – पाण्डेय जी ने घुरहु को झिड़कते हुए कहा , घुरहु ने पाण्डेय जी के पैर छुए और तेजी से खेतो की तरफ निकल गया ।

उत्तर प्रेदश का यह एक छोटा सा गाँव था , जिसमे करीब 60 घर होंगे 25 घर दक्षिण दिशा में बसे चमरौटी टोले में और टोले से बाकी ठाकुरो, ब्राह्मणो , आदि सवर्ण जातियो के थे । गाँव में एक ही मंदिर था जिसके पुजारी यही पाण्डेय जी थे ।
गाँव से बहार जाने के लिए एक ही मुख्य रास्ता था जो की सवर्णों के टोले से होके गुजरता था ,

ठीक एक महीने बाद ,घुरहु के घर में शादी की तैयारी हो रही थी । चंद्रपाल मुम्बई से अपनी शादी के सभी जरुरी सामान ले आया था, नया सूट और काले चमकते जूते उसने मुम्बई की एक महंगी दूकान से ख़रीदा था । घुरहु के घर सभी रिस्तेदार पहुँच चुके थे , मंगल गीत गए जा रहे थे । चंद्रपाल ने पास के कसबे से अंग्रेजी बाजा और घोड़ी भी माँगा ली थी, एक ट्राली और जीप बारातियो के लिए बुक थी । चंद्रपाल अपनी शादी मुम्बई में होने वाली शादियो जैसी करना चाहता था , घोड़े बैंडबाजे के साथ । सभी रिस्तेदार बहुत खुश थे , चमरौटी के लोग अंग्रेजी बाजा सुनने और देखने के लिए जमा हो गए थे । आज तक उनके टोले से किसी की भी बारात में न तो अंग्रेजी बाजा आया था और न ही घोड़ी पर चढ़ के किसी ने बारात ही निकाली थी, सारा माहौल बहुत खुशनुमा था , बच्चे ख़ुशी से कभी घोड़ी को छूते तो कभी अंग्रेजी बाजे पर नाचने लग जाते । आस पास के बिरादरी वाले भी चंद्रपाल की बारात निकासी देखने के लिए जमा होने लगे थे ।

शाम के 5 बजे बारात निकासी होनी शुरू हो गई , चंद्रपाल सूट पहन के घोड़ी पर बैठ बहुत अच्छा लग रहा था , सर पर सेहरा बगल में तलवार । बैंडबाजे वाले कभी भंगड़ा बजाते तो कभी फ़िल्मी धुन, पुरे टोले के बच्चे बैंड पर नाच नाच के पागल हुए जा रहे थे । घोड़ी के साथ औरते भौजपुरी में गीत गाती चल रही थी , कुछ पुरुष घोड़ी के साथ चल रहे थे तो कुछ पहले ही जाके गाँव से बहार खड़ी बारात की ट्राली में बैठ गए थे ।

चंद्रपाल की घोड़ी और बैंड बाजे के साथ मुख्य सड़क पर आ गया था और सवर्णों के टोले में प्रवेश कर चुका था । अभी आधा रास्ता ही पार किया होगा सवर्णों के टोले का की लगभग 40- 50 लोगो की लाठी डंडो से लैस भीड़ मंदिर के चार दिवारी से निकल के चंद्रपाल की बारात पर
टूट पड़ी । वे लोग न स्त्री देख रहे थे और न पुरुष सब पर लाठी डंडो से वार कर रहे थे , एक ने चंद्रपाल को घोड़ी से खींच लिया और जमीन पर पटक दिया । चंद्रपाल का सूट फट गया और सेहरा टूट गया , खीचने वाले ने चंद्रपाल के हाथ पर लाठी का प्रहार किया जिससे चंद्रपाल के हाथ टूट गया उसके बाद सर और बाकी अंगो पर प्रहार किये गए, हमला करने वाले भद्दी भद्दी गलियां बक रहे थे और कह रहे थे की – चमा** तुम्हारी यह हिम्मत की ठाकुरो के दरवाजे के सामने से घोड़ी पर चढ़ के जाओ , बहुत गर्मी चढ़ गई है तुम लोगो को अभी उतारते हैं तुमलोगो की गर्मी ”
चंद्रपाल बेहोश हो गया , सर से खून तेजी से बाह रहा था उसके आलावा घुरहु तथा अन्य बारातियो को भी गंभीर चोटे आई । हमलावरों का खेल तक़रीबन 10 मिनट चला , उसके बाद वे हमलावार बारातियो को चीखते पुकारते हुए पास के घरो में गायब हो गए ।

जो बाराती पहले ही गाँव से बाहर खड़ी ट्राली और जीप में बैठ गए थे वे चीख पुकार सुन के घटनास्थल पर पहुँच चुके थे । जिस ट्राली में चंद्रपाल की बारात जानी थी अब उसी में चंद्रपाल और अन्य घायलो को जिला अस्पताल ले जाया जा रहा था ।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “एक दलित की बारात

  • विजय कुमार सिंघल

    आपकी कहानी अच्छी है, लेकिन यह अब से 20-30 साल पहले की बात हो सकती है. अब ऐसी घटनाएँ बहुत कम सुनने में आती हैं.

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