कविता

मानसून: यादों का गुलदस्ता

मानसून से याद आता है वो मेरा पुराना बस्ता

वो गड्ढों का जमा पानी

वो बारिश तूफानी

वो छाता मजबूत मगर सस्ता

 

स्कूल को जाती सड़क पर छप छप कर कूदना

आसमान की तरफ देखकर कभी आँखों को मूंदना

कभी तेज हवाओं के सरसराते थपेड़ों में हाथो को खोल खड़े रहना

कभी उस छाँव देते पेड़ की ओट में हाथ फैलाए पड़े रहना

मुझे तो याद आता है यादों का गुलदस्ता

मानसून से याद आता है वो मेरा पुराना बस्ता

 

कभी साइकिल को पानी के गड्ढों में उतार देना

कभी बरसाती उतारकर भीगते हुए पानी का मजा लेना

मिटटी जमा करते जूते, मैले होते मोजों में भी बेफिक्री दिखाना

कभी मैदानों में फिसलना कोहनियों में चोट खाना

मुझे तो याद आता है यादों का गुलदस्ता

मानसून से याद आता है वो मेरा पुराना बस्ता

 

सौंधी सी मिटटी की खुशबू का साँसों में घुल जाना

उन पंछियों का बारिश के बाद हमारे छतों पर आ जाना

चहकते पंछियों को सुन मन का खिल उठता साज

बहुत याद आता है उस बारिश का वो मिज़ाज

मुझे तो याद आता है यादों का गुलदस्ता

मानसून से याद आता है वो मेरा पुराना बस्ता

 

____सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

4 thoughts on “मानसून: यादों का गुलदस्ता

  • RAJKISHOR MISHRA [RAJ]

    अतीव सुंदर सृजन सौरभ जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब ! बचपन में बारिश में हम भी बहुत मस्ती करते थे.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सौरव जी , आप ने मेरी भी बचपन की यादें ताज़ा करा दीं. बचपन तो बचपन ही होता है लेकिन हमारा कुछ कुछ बेसिक ही था . कुछ भी हो बचपन की यादें बहुत मज़ा देती हैं .

    • सच कहा सर बचपन तो बचपन ही होता है, उस जैसा कुछ भी नहीं, आज जब अचानक बारिश हुयी तो अपने स्कूल के दिन याद आ गए और ये कविता बन गयी! काश कि बचपन फिर लौट आता….!!

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