कविता

किश्तियों की ज़ुबानी

ले चले चप्पू जिधर , जातीं उधर ये किश्तियाँ
पर हैं पानी के चलन से , बाखबर ये किशतियाँ ।

किस कदर मायूस है वे ,रह गयीं जो घाट पर
देखिये कब हों किसी की ,हमसफ़र ये किश्तियाँ ।

कुछ समंदर की हुयीं ,कुछ हैं नदी या ताल की
हैं मगन पर सब की सब ,अपने ही घर ये किश्तियाँ ।

भाव सेवा का लिये ,कुछ फ़िक्र से कुछ प्यार से
ढो रहीं इसको या उसको , उम्र भर ये किश्तियाँ ।

आते -जाते हाल जब ,पूछा किसी भी धार ने
क्या बतायें है कठिन कितना सफर ये किश्तियाँ ।

है नहीं मतलब इन्हें कुछ ,इस धरा आकाश से
जन्म लेते ही हुयीं जल की नज़र ये किश्तियाँ ।

मन में लेकर कुछ मुरादें डोलतीं कितनी यहाँ
आज गंगा – स्नान के , इस पर्व पर ये किश्तियाँ ।

आस के भर कर ‘ सुमन’ कुछ शाँत इस ‘ डल’ झील में
बाँटती है ख़ुशबुओं को ,दर से दर ये किशतियाँ।

रामेश्वर सिहं राजपुरोहित "कानोडिया"

निवासी- बालोतरा, जिला - बाङमेर, सम्पर्क सूत्र - 9799683421 साहित्यिक गतिविधियां:- अखिल भारतीय अणुव्रत संस्थान, नई दिल्ली के द्वारा सन् 2013 में रचना ‘‘मार्गदर्शन’’(नाटक) का चयन हुआ। इसका ‘‘सफर अणुव्रतों का-शिक्षक की कलम से भाग 3’’ नामक पुस्तक में प्रकाशित भी किया गया। र्वा 2014 आखिरी शो’’(नाटक) राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम स्थान पर रहा और ‘‘सफर अणुव्रतों का-शिक्षक की कलम से भाग 4’’ में प्रकााित हुआ। नवोदित 11 कवियों ने मिलकर के लखनऊ के प्रकाशिक (मणिमाला प्रकाशन-लखनऊ) से ‘‘बेजोड़ बाँसुरी’’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (2014) किया है। पाँच कविताओं का चयन हुआ जिसमें ‘वो चमक उठी तलवार’, ‘अटल चुनौती’, ‘ये जंगली भेड़ियें’, ‘रानी बिटिया’ व ‘वृत’ आदि कविताएँ है। अप्रकाशित साहित्य हैं जिसमें समाज कल्याण व आस-पास के वातावरण सम्बधि वर्णन भी है। इन साहित्य में -सिंहासन की भूख (उपन्यास) व कक्षा कक्ष, गलीया, शहर का कचरा, चलो साफ करे, गग नही मेरा घर, राहो से भटका, सावन आया, मजहब, क्या गायें, चलो बदलते है, नाा जीवन का नाा, बिमारीयों को निमन्त्रण उत्थान, अन्धविवास व पाखण्ड (नाटक) व दोशी कौन?, तारों की रानी, दहेज का दुःख, जमींदार का लोटा, ठाकूर की कुल्हाड़ी, आदत का लाचार, गधा और सेठ, मछरदानी, कर्ज की नौकरानी, माँ का प्यार, नवाब की नाकामी, जीवन के नेत्र, साटे का घाटा, अधूरे सपने, प्रकृति की प्रकृति, तेरे नाम जीवन, निरन्तर अभ्यास, मेरा वो एक दिन लौटा दो (कहानीयाँ) व सात स्वर, सर्द हवाऐं, रोहिड़े के फूल, छोटे-छोटे पौधे, अगर मैं बोलता, प्रातः काल, ऐसा कानुन बनाओं, चन्दा, स्वर्ग धरती पर है, दुामन को चेतावनी, हे मानव, राजनेता, बाढ़ व दर्द, हल्दी घाटी, सफलता ही लक्ष्य, सर्द सोना, और चाहत नही, नन्ही बच्ची, चल तु आज अपनी चाल में, मैं प्यास का पानी हूँ, एकल पुत्री जयते, आचार्य, नव कवि की बुआई, इतिहास का दर्द, मैं हूँ तेरे संग संग, अणुव्रत शिक्षक, भगवा ध्वज, मैं हिन्दी हूँ, वो दिन, राट्र का कबाड़ा, झील के किनारे, चलो बेचते है, कलम तु क्यो रोने लगी, रेत के गीत, जय हो, सुन्दर लफुन्दर, और बेच दो, ये जंगली भेंड़िये (कविताएँ) और कम्प्युटर लैब, ईद थी क्या?, ये आपके नेता है, वो गा रहा है, मन्दिर का पुजारी, बरसात है या तांडव, चलो सो जाते है, अब तो गा ले, (व्यंग्य) और लहर सखियाँ, धर्म बड़ा या कानून, मिडिया गलत दिशा में, पेड मिडिया, संयुक्त परिवार (लेख) आदि।

3 thoughts on “किश्तियों की ज़ुबानी

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह अतीव सुंदर ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल !

  • Manoj Pandey

    सुंदर कविता है।

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