कविता

” वो बेटी ही तो है “

1431172363373“कल घर के आँगन में खेलती थी,
आज आँखों के आँगन में आ जाती है।
वो बेटी ही तो है
जो एक छत और कुछ दीवारों को
घर बना जाती है।।
मैं अपनी कलाई की देखकर राखी,
यही देर रात तक सोचता रहा,
वो बेटी ही तो है
जो आदमी को भाई, पिता, पति-परमेश्वर
बना जाती है।।
जो पिता अपनी दौलत बेटों को देकर
फ़कीर हो जाते हैं दुनिया में,
वो बेटी ही तो है
जो खुद को कोहिनूर कहकर
उन्हें अमीर बना जाती है।।
जब जनकपुरी में अद्भुत सी इस बात पर
उथल-पुथल मच जाती है,
वो बेटी ही तो है
जो खेल-खेल में
शिव-धनुष को सरका जाती है।।

जो अपनी पत्नी की कोख में
बेटी को जहर देते हो,
सुनले,
वो बेटी ही तो है
जो कल खुद माँ बनकर,
तुम्हें बेटा बना जाती है।।

 

(:: नीरज पाण्डेय ::)

नीरज पाण्डेय

नाम- नीरज पाण्डेय पता- तह. सिहोरा, जिला जबलपुर (म.प्र.) योग्यता- एम. ए. ,PGDCA Mo..09826671334 "ना जमीं में हूँ,ना आशमां में हूँ, तुझे छूकर जो गुजरी,मैं उस हवा में हूँ"

2 thoughts on “” वो बेटी ही तो है “

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    aap ke vichaar bahut achhe lage .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर कविता !

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