बाल कविता

अकल और पंजा

शेर-सियार ने सावन में
झूला एक लगाया
बीस-बीस बार झूलेंगे
ऐसा नियम बनाया

एकदिन दोनों दोस्तों में
होने लगा जब झगड़ा
आकर उनसे पूछी लोमड़ी
क्या है भाई लफड़ा

बोला शेर, बहन ! इस पर
क्यों न आयेगा खीस
खुद बीस को दस कहता
मेरे दस झूले को बीस

नहीं बहन झूठे शेर को
गिनना भी न आता है
खुद ज्याद झूलता है
मुझे पंजे से डराता है

अकल लगाओ गिनती सिखो
शेर तेरा है गलत धंधा
लोमड़ी पर शेर झपटकर बोला
यहाँ अकल नहीं चलता है पंजा

जान बचाकर भागी लोमड़ी
रास्ते में मिला एक पेड़
उसके मोटे तने में था
एक बहुत बड़ा सा छेद

तना छेद से भागी लोमड़ी
शेर को दे डाली झटका
शेर पीछे से जब लपका
मोटा शरीर उसी में अँटका

हँसती हुई बोली लोमड़ी
कहाँ गया अब तेरा बल
अकल लगाकर नकल भी करना
यहाँ पंजा नही चलती है अकल

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

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