कुण्डली/छंद

कुंडलियाँ छंद

 

निर्भर जो खुद पर रहे, मिले उसे पहचान।
आस पराई जो करे, छोड़े उसे जहान।
छोड़े उसे जहान, और वो दर-दर भटके।
जीवन बन संत्रास, उसे फिर हर पल खटके।
कह ‘पूतू’ कविराय, रहो घर अथवा बाहर।
बैशाखी को छोड़, स्वयं पर रहना निर्भर॥1॥

नारी अपनी शक्ति को, अगर स्वयं ले जान।
उसको इस संसार में, मिले अलग पहचान।
मिले अलग पहचान, नहीं फिर दुःख भोगेगी।
खुद होगी खुशहाल, चैन औरों को देगी।
कह ‘पूतू’ कविराय, मान की है अधिकारी।
करती नूतन कर्म, जगत में जो भी नारी॥2॥

सुबह-सबेरे जागकर, टहल लिया जो रोज।
रहता सदा निरोग वो, आए मुख पर ओज।
आए मुख पर ओज, काम फिर मन से करता।
प्रकृति खजाना लूट, कष्ट अपने सब हरता।
कह ‘पूतू’ कविराय, लाभ जाने हैं मेरे।
इसीलिए सब छोड़, टहल लो सुबह-सबेरे॥3॥

सेल्फी लेने का जिसे, यारोँ चढ़े बुखार।
औरों से अनजान हो, करे स्वयं से प्यार।
करे स्वयं से प्यार, रहे वो खोया-खोया।
उसके मिस संसार, निरर्थक होता गोया।
कह ‘पूतू’ कविराय, नहीं टेँशन देने का।
फैशन चला नवीन, एक सेल्फी लेने का॥4॥

भाग्य भरोसे जो रहे, दुनिया में इंसान।
उसकी करता है मदद, कभी नहीं भगवान।
कभी नहीं भगवान, दया कादर पर करते।
पशु-पंक्षी भी नित्य, पेट श्रम करके भरते।
कह ‘पूतू’ कविराय, नहीं किस्मत को कोसे।
करते रहें प्रयास, रहे ना भाग्य भरोसे॥5॥

— पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य स्वर्ण पदक सहित),यू.जी.सी.नेट (पाँच बार) जन्मतिथि-03/07/1991 विशिष्ट पहचान -शत प्रतिशत विकलांग संप्रति-असिस्टेँट प्रोफेसर (हिंदी विभाग,जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट,उत्तर प्रदेश) रुचियाँ-लेखन एवं पठन भाषा ज्ञान-हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी,उर्दू। रचनाएँ-अंतर्मन (संयुक्त काव्य संग्रह),समकालीन दोहा कोश में दोहे शामिल,किरनां दा कबीला (पंजाबी संयुक्त काव्य संग्रह),कविता अनवरत-1(संयुक्त काव्य संग्रह),यशधारा(संयुक्त काव्य संग्रह)में रचनाएँ शामिल। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। संपर्क- ग्राम-टीसी,पोस्ट-हसवा,जिला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)-212645 मो.-08604112963 ई.मेल-putupiyush@gmail.com

One thought on “कुंडलियाँ छंद

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कुण्डलियाँ !

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