कविता

मन की बेताबी

जैसे किसी अजनबी ने

बिखेर दिया हो सुर्ख गुलाबों की पंखुडियां
सुबह की किरणें पहुँच चुकी है मन के आंगन में
उजले-उजले से ………..
सर्द हवाओं ने बर्फ की चादरों पर ली है
प्यार से अंगड़ाई……….
पलकों पर सज उठे हैं अनगिनत गुलमोहर
आंचल में सिमट गये हैं बेहिसाब सुर्ख फूलों की खुशबु
हसीन हो गये हैं  जीवन के हर पल …..
बढ़ रही है मन की बेताबी ,
तुमसे मिलने  के इन्तजार में…….
पर आँखों में थोड़ी नमी सी भी है ,
जो शायद खुशियों के हैं ………
और भी बहुत कुछ है जो छुट रहा है ,
कुछ गम उन एहसासों के हैं ……..!!!
संगीता सिंह ‘भावना’

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

One thought on “मन की बेताबी

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

Comments are closed.