लघुकथा

क़दम

बहुत मुश्किल में फस गया विवेक… एक एक घडी उसे बेचैन किये जा रही थी कि जिस समस्या से वो बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है कोई भी रास्ता सूझ नहीं रहा और बिना किसी समाधान के वो इस समस्या से बाहर कैसे निकलेगा.. उसके कदम कामयाबी की राह पर रुक से गए थे.. चाहते हुए भी वह आगे बढ़ने में असमर्थ महसूस कर रहा था..अपना आत्म विश्वास खोने लगा थे वो..

बहुत कोशिश की उसने अपने दिल दिमाग पर काबू पाने की और एक बात जो शिद्दत से काम कर ले कामयाब हो ही जाता है . . समस्या को पार्श्व में रख समाधान पर उसने अपना ध्यान केंद्रित किया ..

एक योजना बनायीं उसने और उसके तीन चरण रखे… पहला चरण समस्या को एवं उसके उत्पन्न होने के मूल कारण सहित उसकी खामियों पर भी गौर किया…

दूसरे चरण के तहत उसने अपने कदम पिता जी के कमरे की ओर बढ़ा दिए.. वह अपने  पिता जी के अनुभव से मिलने वाले समाधान को भी उतना ही महत्व दे रहा था… पिता जी से उसने अपने पहले चरण के बारे में विचार विमर्श किया.. सब कुछ सुनने और समझने के बाद उन्होंने विवेक को अपने अनुभव के लाभ देते हुए समाधान सुझा दिया.. दूसरा चरण सफलतापूर्वक पूर्ण हुआ..

तीसरे चरण में उसने उपलब्ध समाधान को अपनाने से होने वाले फायदे और नुकसान की कसौटी पर परखा और एक अंतिम निर्णय ले ही लिया.. यह वह फैसला था जो उसके रुके हुए कदम को आगे बढ़ने में मदद करता वरन मंज़िल की ओर उसकी गति भी बढ़ा देता… उसने अपना खोया हुआ आत्म विश्वास वापस पा लिया और अपने आप को मजबूत महसूस कर रहा था…

इस तरह उसने समस्या की देहलीज़ पार की और बढ़ा दिया अपना कदम अपनी मंज़िल की ओर…

3 thoughts on “क़दम

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा.

  • मनोज पाण्डेय 'होश'

    यह क्या है ? कथा तो इसमें कोई है ही नहीं ।

    • विजय कुमार सिंघल

      यह लघुकथा है. हालाँकि इसमें कोई विशेष घटना नहीं है. लेकिन एक सन्देश तो है ही !

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