कविताकुण्डली/छंद

पत्नी वृतांत

पत्नी ने झट से कहा
लाओ सौतन एक ,
नहीं द्वेष मन मे
मेरे रखो चाहे अनेक ,
रखो चाहे अनेक नहीं
एतराज हैं मनमे
कान्हा बनकर रास
रचाओ मेरे मन में १
एक कान्हा हज़ार गोपिका
बाँसुरी तेरी प्यारी
आकर्षण कान्हा तेरे में
खिंच जाती थी सारी,
खिंच जाती थी सारी
आज एक राधिका
नाच-नचाए
भूले बाप महतारी
लेकर शहर रहो तुम
देखी बहुत देहात यार
अब शहर रहो तुम ,

राजकिशोर मिश्र [राज]

 

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

4 thoughts on “पत्नी वृतांत

  • विजय कुमार सिंघल

    कविता कुछ स्पष्ट नहीं हुई !

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल जी हम आपके कथन से पूर्णतया सहमत है

      क्योकि उपर की पंक्तियाँ पति -पत्नी संवाद की भूल वश पोस्ट नही की गयी है

      • विजय कुमार सिंघल

        आप इसको सुधार सकते हैं. जो पंक्तियाँ छूट गयी हैं उनको जोड़ दीजिये.

        • राज किशोर मिश्र 'राज'

          आदरणीय सादर नमन , धन्यवाद एवम् आभार

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