कवितापद्य साहित्य

पहनावा…

पहनावा पहचान है,
मानव की इकलौती शान है,
पहने ऐसा जो हो मन भावन,
ऐसा ना जो तुम्हें विचारों से भी नग्न कर दें…
आधुनिकता के भूकंप में,
जूपती तुम्हारी लौ जलती जा रही है,
संस्कृति का सिसकना जारी है,
रुदन बंद पड़ गया है,
पतन सम्मुख ले कटोरा खड़ा है,
अस्वीकृति कर प्रदान,
इसे भग्न कर दे…
ऐसा ना जो तुम्हें विचारों से भी नग्न कर दें…!!!

सूर्यनारायण प्रजापति

जन्म- २ अगस्त, १९९३ पता- तिलक नगर, नावां शहर, जिला- नागौर(राजस्थान) शिक्षा- बी.ए., बीएसटीसी. स्वर्गीय पिता की लेखन कला से प्रेरित होकर स्वयं की भी लेखन में रुचि जागृत हुई. कविताएं, लघुकथाएं व संकलन में रुचि बाल्यकाल से ही है. पुस्तक भी विचारणीय है,परंतु उचित मार्गदर्शन का अभाव है..! रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'रश्मिरथी' नामक अमूल्य कृति से अति प्रभावित है..!

4 thoughts on “पहनावा…

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत सुंदर !!

    • सूर्यनारायण प्रजापति

      धन्यवाद बड़े भाईसाहब

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • सूर्यनारायण प्रजापति

      धन्यवाद सा

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