इतिहास

स्वामी दयानन्द जी और महात्मा ज्योतिबा फूले

jyotibaphuleमहात्मा ज्योतिराव गोविन्दराव फूले (जन्मः 11-4-1827 व मृत्युः 28-11-1890) एक आन्दोलनकारी, चिन्तक, समाज सुधारक व लेखक थे। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई फूले को शिक्षित किया और भारत में स्त्री शिक्षा की सबसे पहले नींव रखी। आपने शिक्षा, कृषि, जन्मना-जाति प्रथा, स्त्री एवं विधवाओं का उद्धार, अस्पर्शयता निवारण के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किया। अगस्त, 1848 में उन्होंने भारत का पहला स्त्री श्क्षिा की पाठशाला खोल कर अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया था। आपने अनेक पुस्तकें लिखी हैं जिनमें सार्वजनिक सत्यधर्म” (अप्रैल, 1889) एवं पूजा प़द्धति (1887) सम्मिलित हैं। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती का सन् 1875 में ढ़ाई महीनों (जून-जुलाई-अगस्त-सितम्बर) की पुणे की धर्म प्रचार यात्रा में महात्मा फूले से सम्पर्क हुआ था। दोनों महापुरूर्षों के परस्पर सम्बन्धों पर आर्य समाज के कीर्तिशेष विद्वान प्रा. कुशल देव शास्त्री जी ने प्रकाश डाला है। उनके लेख पर आधारित विवरण ही इस लेख की विषय वस्तु है।

उन्होंने लिखा है कि  सत्यशोधक समाज (स्थापनाः सितम्बर, 1873) के संस्थापक महात्मा जोती राव फूले (1827-1890) महर्षि दयानन्द जी से तीन वर्ष छोटे थे, किंन्तु सामाजिक कार्य के क्षेत्र में वे महर्षि से पहले ही प्रवेश कर चुके थे। ब्र. शुद्ध चैतन्य (महर्षि दयानन्द) ने जिस वर्ष (1848) संन्यास की दीक्षा ली थी उसी वर्ष दलितोद्धारक महात्मा फूले जी ने पुणे में कन्याओं के लिए पाठशाला खोली थी। आधुनिक भारत के इतिहास में कन्या पाठशाला स्थापित करने वाले वे पहले भारतीय थे। इसीलिए उन्हें भारतीय स्त्री शिक्षा का जनक” कहा जाता है। पाखंड एवं जातीयता के वे कट्टर विरोधी थे। भारतीय स्त्री को सर्वविध दासता के मुक्त कराने के लिए वे हमेशा संघर्षरत रहे। विधवा विवाह एवं शराब बंदी के भी वे कट्टर समर्थक थे। अन्नदाता किसान एवं मजदूरों की भुखमरी और निर्धनता को दूर करने के लिए अपने समर्थ नेतृत्व में उन्होंने अनेक आंदोलन किए। एकेश्वरवाद पर पूर्ण आस्था होते हुए भी ऋषि दयानंद जी की वेद प्रमाण्य विषयक मतों से वे असहमत थे, फिर भी समाज-सुधार के विभिन्न क्षेत्रों में स्वामी जी से पटरी मिलने के कारण वे पुणे में आयोजित स्वामी जी की शोभा-यात्रा (सितम्बर, 1875) में सम्मिलित हुए थे।

मराठी के सुप्रसिद्ध चरित्रकार धनंजय कीर के अनुसार जब पुणे के समाज-सुधारकों ने स्वामी जी के सम्मानार्थ बड़ी धूमधाम से शोभा-यात्रा निकालने का निश्चय किया तो पुणे के सनातनी एवं प्रतिगामी व्यक्तियों ने विघ्न डालने का मनसूबा बांधा। विघ्न-उपद्रव की संभावना को ताड़कर सुधारक लोग शोभा-यात्रा से एक दिन पूर्व महात्मा जोतिबा फुले से मिले और उनसे शोभा-यात्रा में भाग लेने का अनुरोध किया। महर्षि दयानंद के समता तत्व व अस्पृश्यता निवारण आंदोलन महात्मा फूले के जीवन उद्देश्य से संबंधित थे। स्वामी दयानन्द जी का संदेश पूर्णतया निम्नवर्ग तक न पहुंचने की स्थिति में भी महात्मा फुले जी ने सुधारकों को शोभा-यात्रा में अपने अनुयायियों के साथ सम्मिलित होने का वचन दिया। वचनानुसार वे शोभा-यात्रा की सुरक्षा के लिए अपने दल-बल के साथ जलूस में सम्मिलित हुए। महात्मा फुले और न्यायमूर्ति गोविन्द रानाडे समाज-सुधारकों के साथ शोभा-यात्रा में चल रहे थे। इतिहासकार प्रा. हरिदत्त वेदालंकार के अनुसार महर्षि के एक ओर न्यायमूर्ति रानाडे तथा दूसरी ओर महात्मा फुले चल रहे थे।

आर्यसमाज काकड़वाड़ी, मुम्बई के अनुसंधान प्रिय विद्वान पं. दयाशंकर जी शर्मा के अनुसार मराठी के सप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रकार तथा फिल्प निर्माता आचार्य प्रह्लाद केशव अत्रे जी ने स्व-निर्मित महात्मा फुले” चित्रपट (चलचित्र) में स्वामी दयानन्द की इस शोभा यात्रा का लगभग 20 मिनट का चित्रीकरण किया है, जिसमें स्वामी जी हाथी पर विराजमान हैं तथा तत्पश्चात् महात्मा फुले और न्यायमूर्ति रानडे चल रहे हैं।

स्वामी दयानन्द जी के पुणे-निवास-काल में महात्मा फुले जी से संपर्क करने के दो पते थे। पहला-पेठ जुना गंज” में था और दूसरा बेताल पेठ” में था। पेठ जुनागंज में महात्मा फुले जी का निवास स्थान था तो बेतालपेठ में उनकी पुस्तकों की दुकान थी। स्वामीजी का इन दानों स्थलों से विशेष संबंध रहा। पेठ जुनागंज” पूणे में स्थित शूद्रातिशूद्रों की पाठशाला में स्वामी दयानन्द जी ने जुलाई, 1875 में व्याख्यान दिया था, जिसके संदर्भ में तत्कालीन सत्यदीपिका आदि समाचार-पत्रों में स्वामी जी के व्याख्यान की अनुकूल प्रतिकूल चर्चायें हुई थीं। यह भी संभव है कि महार-मांग आदि की ओर से दलितों के विद्यालय में उपदेश देने के संबंध में स्वामीजी को जो निमंत्रण मिला था, वह अप्रत्यक्ष रूप में दलितोद्धारक फुले जी के प्रेरणा से ही लिखा गया हो। संभव है कि स्वामी जी की जाति-भेद विरहित मानवतावादी भूमिका को महात्मा फुले अपनी कसौटी पर कसना चाहते हों, किंवा यह भी संभव है कि स्वामी जी जैसे ज्ञान-कर्मनिष्ठ-अडिग व्यक्तित्व से प्रभावित हो उनके-प्रवचन-आशीर्वचन का कार्यक्रम अपनी पाठशाला में रखकर शूद्राति-शूद्रों को संस्कार संपन्न कराना उनका ध्येय रहा हो। स्वामी जी जैसे संतो की वाणी हो तो वह यथार्थ में दलितोद्धार का सामथ्र्य रखती है।

पुणे-प्रवचन-काल में स्वामी दयानंद जी बेताल पेठ’ क्षेत्र में स्थित दानवीर श्री शंकर शेठ जी के निवास पर ठहरे थे और यहीं पर महात्मा फुले जी की पुस्तकों की दुकान थी। ऐसी परिस्थिति से संभव है कि समाज-सुधार के क्षेत्र में समान विचार वाले इन महापुरूषों का आपस में मेल-जोल और विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्ष हुआ हो, किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि महात्मा फुले जी के साहित्य तथा पत्र-व्यवहार में कहीं भी स्वामी दयानन्द का नाम नहीं मिलता। हां, केवल एक स्थान पर महात्मा फुले जी ने पंडिता रमाबाई का उल्लेख आर्यसमाज की बड़ी बहन’ के रूप में किया है। महात्मा फुले जी ने स्वामी दयानंद का यदि कहीं उल्लेख किया भी हो तो अब तक वह लेखक (प्रा. कुशल देव शास्त्री) की दृष्टि में नहीं आया। यह तो सुनिश्चित है कि महात्मा फुले के एक सहयोगी श्री कृष्णराव पांडुरग भालेकर ने स्वामी जी का एक व्याख्यान भांबुर्डा गांव (वर्तमान पुणे शहर का शिवाजी नगर क्षेत्र) में आयोजित किया था। पुणे कैम्प में स्वामीजी के व्याख्यानों के संयोजक श्री गंगाराम भाऊ म्हस्के भी महात्मा फुले जी के घनिष्ठ मित्रों में से थे। इन सब तथ्यों को देखने के बाद निःसंदिग्ध रूप से यह कहा जा सकता है कि महात्मा फुले जी पुणे-प्रवचन-काल में स्वामी दयानंद के सहयोगी थे। स्वामी जी की वक्तृत्व कला के समीक्षक पौराणिक साहित्यकार विष्णु शास्त्री चिपलूणकर ने भी स्वामी दयानन्द जी के विशिष्ट सहयोगी संस्था के रूप में महात्मा फुले जी द्वारा स्थापित सत्य-शोधक-समाज का उल्लेख किया है।

लेखक श्री कुशलदेव शास्त्री ने दो महापुरूषों के सम्बन्धों पर पूर्णतया निष्पक्ष होकर ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर तथ्यात्मक लेख प्रस्तुत किया है। विस्मृत तथ्यों के प्रकाश की दृष्टि से इन पंक्तियों के लेखक का यह प्रयास है। इससे महर्षि दयानन्द के जीवन विषयक कुछ तथ्यों से पाठक परिचित होंगे, इस भावना से यह लेख प्रस्तुत हैं।

मनमोहन कुमार आर्य

 

4 thoughts on “स्वामी दयानन्द जी और महात्मा ज्योतिबा फूले

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख ! महात्मा ज्योतिबा फूले और स्वामी दयानंद दूं महान समाज सुधारक विभूतियाँ थीं. यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ कि उनकी आपस में भी भेंट हुई थी. इस विषय पर और अधिक शोध किया जाना चाहिए. लेख के लिए हार्दिक साधुवाद !

    • Man Mohan Kumar Arya

      धन्यवाद श्री विजय जी। महात्मा ज्योतिबा फुले और स्वामी दयानंद जी के सम्बन्धो पर महाराष्ट्र निवासी ऋषिभक्त स्व. डॉ. प्रा. कुशल देव शास्त्री जी ने गहन शोध किया है। अपने कार्यों को उन्होंने “महर्षि दयानंद : काल एवं व्यक्तित्व” के नाम से प्रकाशित कराया है। अत्याधिक समय बीत जाने के कारण बहुत सी बाते प्रकाश में नहीं आ सकी है। अब यदि कोई शोधार्थी कार्य करता भी है तो उसकी सफलता संदिग्ध है। महर्षि दयानंद जी ने पुणे में ५० से अधिक व्याख्यान दिए थे परन्तु केवल १५ व्याख्यानों का संछिप्त रूप ही उपलब्ध हो सका है। महर्षि दयानंद ने वहां ज्योतिबा फुले जी की कन्याओं की पाठशाला में अपने व्याख्यान में क्या कहा था, किंचित मात्र भी उपलब्ध नहीं है। काश वह व्याख्यान पूरा उपलब्ध हो पाता? प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मनमोहन जी , लेख अच्छा लगा , ज्योतिबा फूले जी के बारे में जान कर अच्छा लगा . नारी शिक्षा की शुरुआत के बारे में जान कर अच्छा लगा . ऐसे सुधारकों की अब देश को जरुरत है . जब फूले जी ने समाज सुधार शुरू किया होगा तो उन को बहुत मुश्किलें आईं होंगी किओंकि अब भी बहुत लोग रूडिवादी है , उस समय तो इस की इन्तहा ही होगी .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं धन्यवाद। आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक है। महात्मा जी एक पुण्य आत्मा व दिव्यात्मा थे। भारत में सर्व प्रथम स्त्री शिक्षा की पाठशाला खोलकर उन्होंने स्वयं को इतिहास में अमर कर दिया। इस दिव्य पुरुष का महर्षि दयानंद के समाज सुधार के कार्यों में सहयोग करना और उनको अपनी कन्याओं की पाठशाला में निमंत्रित करना प्रशंसनीय है। काश कि हमारे पौराणिक सनातन धर्मी बंधु इस महात्मा से कुछ सबक सीखते तो देश का अपूर्व कल्याण होता। महर्षि दयानंद का उनकी शुद्रातिशूद्रों की कन्या पाठशाला में जाकर व्याख्यान देना उनको मानवजाति विशेष रूप से दलितों और पिछड़ों का सच्चा हितैषी सिद्ध करता है। महापुरुष कभी कठिनाईयों के आगे समर्पण नहीं करते अपितु प्राणपण से अपनी भावना को क्रियान्वित करते है। महात्मा फुले जी ने भी ऐसा ही किया। आपका हार्दिक धन्यवाद।

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