कविता

इक फूल खिला है ग़ालिब

बेहद बेहतरीन शायर ग़ालिब  के 217 वें जन्मदिवस पर

कही जो बर्फ पड़ी है
लगता हैं ठंड बड़ी है
हवा का रुख भी है बदला हुआ
मौसम भी है महका हुआ
कलियों में होने लगी है गुफ्तगू
भला आज चमन क्यूँ है बहका हुआ
तभी एक कली ने
दूसरी से कहा इक़ फूल खिला है
*ग़ालिब* जो
हरदिल अज़ीज़ है * ग़ालिब *
तुमने ये क्या फूल खिलाया है
यारब गुलाब -ए – ग़ालिब की
सुखन में महके है जमाना यारब
इक फूल खिला है *ग़ालिब *
शत – शत नमन !

चन्द्रकान्ता सिवाल 'चंद्रेश'

जन्म तिथि : 15 जून 1970 नई दिल्ली शिक्षा : जीवन की कविता ही शिक्षा हैं कार्यक्षेत्र : ग्रहणी प्ररेणास्रोत : मेरी माँ स्व. गौरा देवी सिवाल साहित्यिक यात्रा : विभिन्न स्थानीय एवम् राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित कुछ प्रकाशित कवितायें * माँ फुलों में * मैली उजली धुप * मैट्रो की सीढ़ियां * गागर में सागर * जेठ की दोपहरी प्रकाशन : सांझासंग्रह *सहोदरी सोपान * भाग -1 भाषा सहोदरी हिंदी सांझासंग्रह *कविता अनवरत * भाग -3 अयन प्रकाशन सम्प्राप्ति : भाषा सहोदरी हिंदी * सहोदरी साहित्य सम्मान से सम्मानित

One thought on “इक फूल खिला है ग़ालिब

  • विजय कुमार सिंघल

    ग़ालिब को याद करना अच्छा लगा.

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