कविता

हौंसलों की उड़ान

देख पंछी परिंदों को
मेरे मन जागी इच्छा
मैं भी इनकी तरह
उडूँ उन्मुक्त आकाश में
लेकिन इनके तो पंख हैं
मैं पंख कहाँ से लाऊँ
मैं हो गयी परेशान
अब कैसे भरुँ उड़ान
दिल ने मुझे समझाया
धैर्य दिला के कहा
घबराओ मत ऐसे
मैं उपाय बताता हूँ
पंख नहीं तो क्या हुआ
हौंसलों की उड़ान भरेंगे
सारा जहान घुमेंगे
नाप लेंगे सारी धरती
और सारा आकाश भी
ऊपर नभ में हीं
एक सुंदर और प्यारा
आशियाँ बनायेंगे
चाँद-तारों से सजायेंगे
राहों में
बिछड़े राही को
प्यार से उठाकर
गले से लगाकर
उसकी मंजिल के पथ में
रोशनी जलायेंगे
उसे उड़ाना सिखायेंगे
वह भी छूयेगा आसमान
हौंसलों की पर लगाके
भरेगा उड़ान
– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

2 thoughts on “हौंसलों की उड़ान

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    अच्छी कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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