कहानी

लुटेरे

आज प्रदीप पहली बार चोरी करने के इरादे से , रात के काले अँधेरे में, घर से बाहर निकल पड़ा । वो कोई पैदाइशी चोर नहीं था, पर जिंदगी की बेरुखी और गरीबी ने उसे इस काम की और धकेल दिया था । कभी कभी इंसान हालातों की चपेट में, इस कदर फस जाता है कि वो न चाहते हुए भी वो काम करने की सोच जाता है, जिसकी इजाजत उसका जमीर नहीं देता , ऐसा ही कुछ प्रदीप के साथ हुआ |

प्रदीप अपने पिता के साथ मजदूरी करने जाया करता था गरीबी के कारण स्कूल तो कभी जा ही नहीं पाया अभी जवानी में पग रखा ही था, ठीक से चेहरे पर मूंछें भी नहीं फूटी थी कि पिता का देहांत हो गया, मौत कब किसी की मजबूरियों को देखती है होनी हो कर ही रहती है अपने परिवार को बेसहारा छोड़ कर, पिता इस दुनिया को अलविदा कह गए और घर की सारी जिम्मेवारियों का बोझ प्रदीप के कंधों पर छोड़ गए । घर का मुखिया होने पर, माँ और बड़ी बहन के प्रति अपने सारे फ़र्ज़ निभा रहा था मजदूरी और बोझ उठाने का काम करते-करते वो जवानी में ही बूढ़ा दिखाई देने लगा था | काम से जो पैसे मिलते उससे दाल-रोटी का गुजारा मुश्किल से हो पाता । पिता के गुजरने के बाद माँ बीमार रहने लगी थी इसलिए बहन अपने भाई की मदद के लिए लोगों के घरो में साफ़ सफाई का काम करने जाया करती ।

पर जवान बहन को यूं लोगों के घर काम करने भेजना उसको चिंतित कर जाता| तरह तरह के ख्याल उसे घेरे रखते| एक दिन निम्मी आँखे झुकाये घर आई तो प्रदीप का माथा ठनका पूछने पर निम्मी भाई के गले लग कर रोने लगी| भाई के पूछने पर उसने बताया कि जिस घर में वो काम करने जाती है उनके लड़के ने उसके साथ बतमीजी करने की कोशिश की, निम्मी ने उस बदतमीजी का जवाब उस के मुंह पर तमाचा मार कर दिया और अपनी इज्जत पर आंच नहीं आने दी उस के साथ हुई घटना को सुन कर प्रदीप की आँखों में जैसे खून उत्तर आया और चिल्लाने लगा ” ये अमीर आदमी गरीबों को अपने हाथों की कठपुतली समझते हैं क्या… जो जी चाहे ये कर सकते है … किसी की भी मां-बहिन को बेइज्जत कर सकते है… मैं उस कमीने को नहीं छोड़ूंगा … वो रसोई घर से चाकू उठा कर जाने ही वाला था तबी माँ की चिंतित और डरी हुई आवाज ने उसे रोका ” नहीं मेरे बच्चे नहीं … शांत हो जा, अगर तुमने गुस्से में कुछ कर दिया तो वो तुम्हें सारी उम्र जेल में धकेल देंगे। फिर तेरे बगैर तेरी बहन और माँ का कौन सहारा होगा इस बेदर्द दुनिया में गरीबों को इन्साफ नहीं मिलता मेरे बच्चे देख हमारी निम्मी सुरक्षित है, भगवान का शुक्र है। चाक़ू फैंक दे बेटा, कल को इसकी शादी करनी है इस बात की खबर कानों-कान किसी को होने न पाए। ” माँ के मुंह से ये सब बातें सुन कर प्रदीप के हाथ ढीले पड़ गए और चाकू जमीन पर जा गिरा और दोनों हाथो में माथा पकडे वो वह पास पड़ी बेंच पर जा गिरा वो भारी गले से बोला ” औ माँ आज में बहुत बेबस महसूस कर रहा हूं। … इंसानों की दुनिया में इंसानियत लुप्त क्यों होती जा रही है ? हमारी बहू-बेटियां इस संसार में सुरक्षित क्यों नहीं है ? पर में अपनी बहन पर कभी आंच नहीं आने दूंगा, आज के बाद निम्मी किसी के भी घर में काम करने नहीं जाएगी ।

दूसरी ओर बहन की बढ़ती उम्र को देख कर उसकी शादी की चिंता उसे सताती। शांति ताई जाने कितने ही घरों से रिश्ते लाई पर लड़के वालो की मांगों को पूरा करना प्रदीप के बस की बात नहीं थी, कई लड़के वाले तो घर की हालत देख कर ही खिसक जाते | प्रदीप जब माँ की आँखों में बेबसी और चिंता के आंसू देखता तो उसके दिल में दर्द की टीस उठ जाती । उसने अपने मालिक से थोड़े पैसे उधार मांगने की सोची पर उसने भी मना कर दिया और बोला “ओह तेरे पास कौन सी जमीन-जायदाद है गिरवी रखने के लिए, जो मैं तुम्हे उधार दे दूँ पैसे कौन से दरख्तों पर उगते हैं, जो मैं यूं ही बांटता फिरूं ” प्रदीप उदास मन से वहां से चल पड़ा । उसके लिए आस के सभी दरवाजे बंद हो चुके थे गहरी सोच में डूबा वो बड़बड़ाता हुआ चला जा रहा था ” बहन की शादी कैसे होगी … लड़के वाले दहेज़ के लिए मुंह फाड़े बैठे हैं…. उन लालचियों से कोई जरा पूछे माँ बाप अपने दिल का टुकड़ा उन्हें दान में देते है इससे बड़ा दान और क्या होगा? जो वो दहेज के रूप में और दान मांगते है,ये लोग मन के कितने कंगाल होते हैं। । है भगवान खून-पसीना एक करने के बाद भी मैं अपनी बहन की शादी के लिए दहेज इक्कट्ठा नहीं कर पाऊंगा …इसके लिए मुझे कुछ और करना पड़ेगा. हां मुझे कुछ और करना पड़ेगा ।” और प्रदीप चोरी करने चल पड़ा माँ की उस विनती को भुला दिया जिसे सुनकर उस दिन उसके हाथों से चाकू छूट गया था ।

काले अँधेरे को चीरता हुआ वो गलियों से गुजर रहा था तभी गली की नुक्कड़ पर उसकी नजर एक ऐसे घर पर पड़ी, जिस पर बहुत सजावट की गई थी बिजली की लड़ियां जगमगा रही थी वो चोरी करने के लिए अंदर जाने की कोशिशें करने लगा काफी कोशिशों के बाद दीवार फांद कर अंदर पहुँच गया घर के दूसरी और लेडीज़ संगीत चल रहा था सभी लोग वहां व्यस्त थे उसने एक कमरा बंद देखा उसकी कुण्डी खोल कर जल्दी से अंदर घुस गया एक अलमारी का ताला तोड़ कर कुछ गहनों के डिब्बे और नकद उसके हाथ लगी। उसने सोचा कि इतने पैसों से वो अपनी बहन की शादी आराम से कर पायेगा उस ने जल्दी से अपने कमर पर बढ़ा गमछा खोला और उसमे सारा समान बांध लिया और जल्दी से उस दीवार के पास पहुंचा जिसे लांघ कर वो अंदर आया था

उसी वकत अंदर से किसी औरत के चिलाने की आवाज सुनाई दी ” है भगवान हम लुट गए बर्बाद हो गए … अब मेरी बेटी का क्या होगा , उसकी डोली कैसे उठेगी उसके ससुराल वालों ने जितने गहनो की मांग की थी वो चोर ले गया (उसका विलाप और तेज हो गया) । प्रदीप का दिल कांप उठा, उसे लगा जैसे ये उसकी माँ की चीख-पुकार है| वो अपनी बहन का जीवन संवारने के लिए किसी दूसरे की बेटी की जिंदगी ख़राब कर रहा है। । वो बड़बड़ाया …” नहीं मैं ये क्या कर रहा हूं ? मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए … फिर कभी इस पाप के रास्ते नहीं आऊंगा। । पर उन लुटेरों का क्या जो बेटी वालों को दान-दहेज के नाम पर सरेआम लूट रहे है… दहेज़ की मांगें पूरी न होने पर या तो बहू को ज़िंदा जला दिया जाता है या इतना अत्याचार किया जाता है कि वो खुद ही मौत को गले लगा लेती है ये पाप कब खत्म होंगे ? मैं अपनी बहन को ऐसे लोगो के घर नहीं भेजूंगा जो दहेज के लालची हो भले ही वो कुंआरी बैठी रहे, अरे कम से कम बहन आँखों के सामने, हमारे पास, जिन्दा तो रहेगी ।  प्रदीप के चहरे पर एक संतुष्टि की लहर दौड़ गयी ।

प्रदीप गहनों की पोटली वहीँ छोड़ कर, दीवार फांद कर अँधेरे में गायब हो गया । घर वालों ने गहने मिलने पर रब का शुक्रिया किया, सुख की सांस ली की अब बेटी की उसकी डोली उठ पाएगी |

4 thoughts on “लुटेरे

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मंजीत , कहानी बहुत अच्छी लगी , मजबूरी इंसान को किया किया करने पर मजबूर कर देती है . जो लुटेरे घर में घुस कर चोरी करते हैं वोह तो कभी कभी सजा प् ही लेते हैं , लेकिन जो बहु बेतिओं पर ज़ुल्म करते हैं वोह दिखाई नहीं देते .

    • मनजीत कौर

      कहानी पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया भाई साहब

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी और प्रेरक कहानी !

    • मनजीत कौर

      शुक्रिया भाई साहब

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