कविता

कविता

लहलहाते हरे भरे पेड़ों की छाँव
शहरों से लुप्त होते हरियाली के पाँव
चाँद सितारों से सजी लगती तो है रात
दिन के शोर में गुम हो जाती है शान्ति की हर बात
जाने और कितना सफल होगा अभी इन्सान
कि धरती पर अच्छे लगने लगे

उसे बस ऊँची इमारतें और मकान

— कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

2 thoughts on “कविता

  • Vivek Bharti

    kya baat hai

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

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