गीत/नवगीत

नवगीत : क्यों हुआ

 

मुझे पता ही नहीं मैं हूँ कि नहीं
आसमाँ में दिखा तारा तो नहीं

चलती हुई धड़कन मेरी क्यों थम गयी
आग जो सीने में थी क्यों बुझ गयी
हैरां हैं हम ये सोचकर क्या हुई हमसे खता
सजा मिली किस बात की है नहीं हमको पता

क्यों हुआ क्यों हुआ जो होना न था
क्यों खुआ क्यों खुआ जो खोना न था

कभी जुबां खामोश थी कभी किस्मत सो गयी
कभी समझ न आया कि आँखें क्यों नम हो गयी
कभी अकेले में भी खुश थे यादें साथी बन गयी
भीड़ में हैं अब खड़े जिंदगी तनहा हो गयी

क्यों हुआ क्यों हुआ जो होना न था
क्यों खुआ क्यों खुआ जो खोना न था

One thought on “नवगीत : क्यों हुआ

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

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