लघुकथा

लघुकथा : एन० आर० आई०

“देख कुलवंत ज़माना बहुत ख़राब है। आजकल एन० आर० आइज़ ने नया ट्रेंड चला रखा है। कई जगह ऐसे केस हो चुके हैं कि यहाँ कि भोली-भाली लड़कियों या विधवा औरतों को विदेश जाने का लालच देकर अप्रवासी भारतीय उनसे शादी का नाटक रचा लेते हैं और अपनी छुट्टियों को रंगीन बनाकर वापिस चले जाते हैं, हमेशा के लिए…”

“नहीं-नहीं मेरा मनिंदर ऐसा नहीं है, उसने मुझे शादी से पहले ही सोने की अंगूठी भेंट की थी और कहा था इंग्लैंड में वह बहुत बड़े बंगले का मालिक है। जिसे शादी के बाद वह मेरे नाम कर देगा और कुछ ही समय बाद जल्द से जल्द वह मुझे भी इंग्लैंड ले जायेगा…”

“रब करे ऐसा ही हो कुलवंत, तेरा बच्चा इंग्लैंड में ही आँखें खोले…”

असहनीय प्रसव पीड़ा में भी कुलवंत कौर के कानों में अपनी सखी मनप्रीत के कहे शब्द गूंज रहे थे। उसे यकीन नहीं रो रहा था कि उसके साथ भी छल हुआ है, “तो क्या मै उस हरामी का पाप जन रही हूँ … जो परदेश जाकर मुझे भूल ही गया, पिछले छह महीनों से जिसने एक फ़ोन तक नहीं किया … हाय! मै क्यों उसके झांसे में आई … लन्दन में उसका आलीशान बंगला, थेम्स नदी की सैर… इंग्लैंड की सुपरफार्स्ट ट्रेने … आह! इन वादों की आड़ में वह गिद्ध दिन-रात मुझे नोचता रहा … मेरे भोले-भले जज्बातों से खेलता रहा … काश! उसके इरादों का पहले पता चल जाता तो …”

छल-कपट की ग्लानि में प्रसव की पीड़ा गौण हो गई। उसकी नवजात बच्ची की किलकारियां वातावरण में गूंजने लगी। एन० आर० आई० मनिंदर का विश्वाशघाती चेहरा उसकी आँखों में घूमने लगा। अतः उसका भी जी चाहा कि नवजात बच्ची की किलकारियों के बीच वह भी दहाड़े मारके रोने लगे।

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

3 thoughts on “लघुकथा : एन० आर० आई०

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    महावीर जी , आप की लघु कथा आँखें खोल देने वाली है . मैं यहाँ रहता हूँ .यहाँ इतनी लडकिया हैं जो बच्चे लेकर दुःख भरी जिंदगी बतीत कर रही हैं .हम इंडिया के रिश्तेदारों को बहुत समझाते हैं लेकिन वोह समझते ही नहीं . उन का तो यह ही मकसद है कि उन का लड़का लड़की बाहर चले जाए , बाद में बेछक आंसूं बहाते रहें . यहाँ लड़के लद्किआन पुलों के नीचे सोते हैं और गुरदुआरे में रोटीआं खाते हैं .बहुत लद्किआन ऐसी हैं जो पड़ने के लिए आई हैं और खर्चे के लिए पैसे नहीं हैं , इस लिए बुरे काम करती हैं . हम ने कोई रिश्तेदार यहाँ नहीं मंगवाया किओंकि हम किसी के अपराधी नहीं बनना चाहते . मिडिया में लोगों को समझाना चाहिए .

    • विजय कुमार सिंघल

      सही कहा, भाई साहब, आपने. दूर के ढोल सुहावने होते हैं.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कहानी ! ऐसी घटनाएँ बहुत होती हैं.

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