मुक्तक/दोहा

चतुष्पदी

माँ का दूध कलंकित कर , नारी पर शक्ति दिखाते हैं
ऐसे नापाक नामर्द जगत में, कैसे मुख दिखलाते हैं
पुरुषत्व कभी न शोषण करता, प्रेम का पाठ पढ़ाता है
क्यारी-क्यारी सींच सींच कर, गुलशन रोज सजाता है

राजकिशोर मिश्र राज

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

4 thoughts on “चतुष्पदी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कम लफ़्ज़ों में बहुत कुछ कह दिया .

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    आदरणीय हौसला अफजाई के लिए आभार/

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय हौसला अफजाई के लिए कोटिश आभार/

Comments are closed.