कविता

~~फेसबुकिया मम्मी~~


फेसबुक अकाउंट बना पकड़ा दिया हमको
मम्मी देखों ऐसे-ऐसे होता है समझा दिया हमको

पर हम ठहरें मूरख एक बात भी ना समझे थे
क्या करें कैसे करें कुछ भी ना सीखें थे
आर्कुट ही लगता अपने को चंगा
फेसबुक खोल कौन लेता पंगा
आर्कुट पर ही १५- २० मिनट बितातें
सब की फोटो देख खुश हम हो जातें
कौन अपने पर दें रहा कम्मेंट
कुछ ना पता चलता था
फिर भी थोड़ा बहुत वही पर
अपना खाली वक्त बीतता था |

पर उसके बार-बार समझाने पर
धीरे-धीरे कुछ कुछ समझने लगें थे
एकाक गाने की लाइन पोस्ट करने लगें थे
एक दो अच्छा कह कर जातें
हम भी धन्यवाद कह खाना पूर्ति कर आतें
पर जब सब धीरे-धीरे समझ आने लगा
मंचो से जुड़ने पर अपना मुहं भी खुलने लगा
कोई कुछ भी कहता जबाब झट दे देते
दुआ सलाम होता भाइयों से बैठ बतिया लेतें|

धीरे धीरे फ्रेंड लिस्ट की संख्या लगी बढ़ने
सब मंच से निकल अपने लिस्ट में लगे थे जुड़ने
फिर क्या था जो दस मिनट में था दम घुटता
ना जाने कब समय बीतने लगा घंटा दो घंटा
अब बिटिया कहती सिखा गलती कर दी
मम्मी तो हमारी फेसबुकिया मम्मी हो ली
खाना पानी देना सब भूल जाती हैं इस चक्कर में
हमसे ज्यादा खुद ही अब समय बिताती हैं इसमें|

पतिदेव भी कभी-कभी खीझ ही जातें
जब फेशबुक का चक्कर लगाते हमें पातें
तुम तो इस चक्कर में घर को ही भूल जाती हो
हमको भी थोड़ा समय नहीं दे पाती हो
तुम ऐसा करो क्यों नहीं इसको ही छोड़ देती हो
क्या करें हम तुम्हीं बतलाओं
मेरे अस्तित्व को ऐसे तो न झुठलाओं
छूटी थी जो लेखनी इसी से फिर हम पकड़ पायें
रोज कुछ ना कुछ अब तो लिख ही यहाँ जायें
फिर बताओ कैसे हम इसको छोड़ पायें
फालतू का समय ही तो हम यहाँ बितायें
मन के भाव जो दब गए थे कही एक कोने में
वह फिर से कागज को स्याह करके
अभिव्यक्ति किसी ना किसी रूप में होलें |…सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|