कविता

कोरा कागज

मेरे दिल के
कोरे कागज पर
तुम्हारा ही सिग्नेचर है
जिसे जब चाहो
जैसे चाहो
भुना लो
क्रेडिट या डेबिट कार्ड की तरह. . .

सुनो
प्यार और पैसा
दो अलग अलग चीजेँ हैँ
कभी भी मेरे दिल को
ब्लैँक्ड चेक मत समझना
वर्ना खो दोगे
एक दिन
पूरी जमा राशि . . .

हो सके तो
थोड़ा प्रेम डालना
सिक्कोँ की खनखनाहट की तरह
अपनी खनकती हँसी डालना
बढ़ती ही जाएगी
हमारी जमा पूँजी
और
मैँ
ऋणी रहुंगी तुम्हारी
आजीवन

—–सीमा सहरा—-

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- sangsar.seema777@gmail.com आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!