कविता

पगडंडी –छाया चित्र

और कुछ पल बाद,
एक साल
और कम हो जाएगा
तेरे मेरे बीच की दूरियां
निरंतर कम हो रही हैं
ठीक ही तो है
देखूं जरा अवनी पर
पुलकित हो रजनी पर
चन्द्र किरण आई हैं
चाँदी की चुनर ओढ़
प्रीतम से नयन जोड़
बरबस मुस्काई हैं
खिड़की की ओट खड़ी
कौतुक से देखरही
संदेशा लाई हैं
पंछी का कलरव
पपीहरा की पीहू
कोकिला की कुहुक
भौंरों की गुनगुन
अरे यह क्या,
कौन खिलखिलाया
मधुर हास
कोई नन्ही कली
हाँ शायद
नई है
अनजान है
सुबह कोई आयेगा
तोड़ लेगा
गूँथ लेगा माला में
या सजा लेगी
कोई बाला फिर
घुंघराले बालों में
अन्त तोआना है
मसला ही जाना है
किसी के हाथमें
या बहके कदमों में
खबरा कर मैंने
मूँद ली हैं आँखें
क्या सचमुच
कल सुबह होगी
उगेगा सूरज
कली खिल पायेगी
दो बूंद ढुलक गई
आँखें छलक गई
बेबस सीत्कार
ओठ की कोर पर
हल्की सिसकारी बन
मन को निचोड़ कर
चुपके से निकल गई
पगडंडी पैरों को
फिसला कर
खिसक गई
ज़िन्दगी
मुझको
इक
अनजाने रस्ते पर
धकिया कर
लपक गई

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

One thought on “पगडंडी –छाया चित्र

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछे .

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