मुक्तक/दोहा

दो मुक्तक

धुँआ-धुँआ हो गयी जिंदगी अब तुम बिन
कतरा कतरा बह गये सपने सब तुम बिन
होते जो साथ बनते तुम मेरी ग़ज़ल गुंजन
मेरे शब्द रूठे मुझसे न जाने कब तुम बिन ।

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मुमकिन नही होता मुहब्बत को बयां करना
बेवफा जमाने में दिल थोडा सा धीरज धरना
चुभती रहेंगी शूल बन चाहत दिल में ‘गुंजन’
तीर-ए-हर्फ़ से तुम मुहब्बत में कभी न डरना ।
__________गुंजन अग्रवाल ______________

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

7 thoughts on “दो मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

  • महातम मिश्र

    सुभान अल्ला, बहुत खूब

    • गुंजन अग्रवाल

      dhnywad sir 🙂

    • गुंजन अग्रवाल

      aabhar sir 🙂

  • कामनी गुप्ता

    Very nice

    • गुंजन अग्रवाल

      hertly thnxx 🙂

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