गीतिका/ग़ज़ल

क़त’आ

भीगी  पलकें  सुखा  लिया हमने,
दिल को पत्थर बना लिया हमने।

सर्द आहों से सिल लिये लब को,
रूप सादा  बना लिया  हमने।

दाद कुछ दो कि किस क़रीने से,
तेरी फितरत छुपा लिया हमने।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “क़त’आ

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर !

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