बाल कविता

बादल

काले बादल नभ में गरजते ,

रिमझिम -रिमझिम बरसते बादल ,

इस तप्त धरती को ,

शीतलता प्रदान करते बादल ,

इन बूंदा बूंदी फुहारो में ,

बच्चे नहाते आँगन में ,

शोर मचाकर , धूम मचाकर ,

मस्ती करते आँगन में ,

हाथ जोड़ कर विनती करते ,

बार -बार तू आना सावन में ,

तेरा आना अच्छा लगता ,

जैसे बागियों में फूलों का खिलना ,

जब तू आता मन हर्षाता ,

तन – मन भी बेशुध हो जाता ,

खेत खलिहान में हरियाली लाता,

सबके मन को सदा लुभाता|

निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

2 thoughts on “बादल

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      धन्यवाद सर!!

Comments are closed.