क्षणिका

क्षणिका

ईश्वर ने
जड़ों में दुख
कुछ वैसे ही
डाला जैसे
बड़ी श्रद्धा से
सीधा आंचल कर
तुलसी में
जल देती हू ..!!

रितु शर्मा

रितु शर्मा

नाम _रितु शर्मा सम्प्रति _शिक्षिका पता _हरिद्वार मन के भावो को उकेरना अच्छा लगता हैं

One thought on “क्षणिका

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया। लेकिन दुखों का कारण ईश्वर नहीं हम स्वयं होते हैं।
    नहीं कोई काऊ सुख दुखकर दाता।
    निज कृत करम भोग सब भ्राता।।

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