लघुकथा

बहू बनाम बेटी

अचानक सहेली प्रभा की मौत की खबर सुन कमला तो जैसे अंदर तक हिल गयी | प्रभा की बहू का फोन आया और वो जाने की तैयारी में लग गयी | ट्रेन में बैठी- बैठी कमला उसी के बारे ही सोच रही है ‘ कुछ दिन पहले ही प्रभा का पत्र आया था कि बहू का मेरे प्रति व्यवहार बिलकुल भी ठीक नही है सम्मान की भावना तो दूर- दूर तक उसके मन में नही आती हैअति व्यसत्तता के चलते ज्यादा तो नही केवल एक बार ही प्रभा के घर जा सकी थी तब मुझे तो उसके व्यवहार में कोई कमी नही दिखी | आखिर चार घंटे के सफर बाद प्रभा के घर पहुंच गयी | बहू तो मुझसे लिपट कर दहाड़े मार कर रोने लगी विनय भी मुहँ लटकाए खड़ा था| आखिर कार एकांत पाकर बहू और विनय ने मुझसे बात की |माँ जाते -जाते एक पत्र और लिख गयी जिसके अनुसार उसे बहू ने मरने को उकसाया है हम दोनों बहुत परेशान है हमारा एक साल का नन्हा बच्चा भी है अगर नेहा को जेल होती है तो बच्चे का क्या होगा आंटी जी हमने तो हर तरह से माँ को खुश रखने की कोशिश की पर उन्हें हमारी हर बात गलत ही लगती थी |माँ तो अपनी सांस की बीमारी से मरी है कौन अपनी माँ को मरने को छोड़ेगा |बराबर डॉ देखने आता था | बहू को अभी तो जमानत पर छोड़ा गया है | मैंने बहू को बचाने को अपनी मोरल ड्यूटी समझा और मै बहू और विनय के साथ उसी वक्त पुलिस थाणे पहुंच कर अपना बयाँ दर्ज कराया और बहू को केस से मुक्त होने में अहम रोल अदा किया ऐसा करके मैंने अपनी बेटी समान बहू को मुश्किल में पड़ने से बचाया | उसी दिन से बहू ने मुझे अपनी माँ माना और मैंने सहेली की बहू को अपनी बेटी |
शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

3 thoughts on “बहू बनाम बेटी

  • प्रीति दक्ष

    badiya kahani shanti ji ..

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी है यह लघु कथा ,रिश्ते बहुत गुन्झलदार होते हैं ,बाहिर से और दीखते हैं जब कि भीतर से और ही होते हैं , सहेली ने बहुत अच्छा किया .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी लघुकथा. सहेली ने अपना कर्तव्य सही तरीके से निभाया.

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