कविता

जल

कहीं दो बूंद को तरसता कोई,कहीं यूंही व्यर्थ बहता जल |
प्रलुब्ध हो गए हैं कुछ तो ,कुछ आबद्ध हैं |
कहीं बहता आता आपदा बन, कहीं विलुप्त होता निर्मल जल |
यूंही चलता रहा तो कहाँ संभाल पाएंगे यह अनमोल जल |
जितना चाहिए उतना हो इस्तेमाल ना जाए व्यर्थ यह जल |
तभी तो चिरकाल तक पा सकेंगे यह निर्मल जल |

– कामनी गुप्ता जम्मू

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

One thought on “जल

  • विजय कुमार सिंघल

    जल संरक्षण का संदेश देती अच्छी कविता।

Comments are closed.