कविता

बेवफा लहरें

समुद्र की लहरें कभी खामोश नहीं रहतीं,

समुद्र की लहरें कभी वफ़ा नहीं करतीं,

उनकी फितरत है लौट जाना,

साहिल को भिगोकर,

लहरों पे कभी यकीन न करना

रेत पर पाँव जमा कर रखना,

वरना, बेवफा लहरें बहा ले जायेंगी,

तुम्हें भी, तलुए के नीचे की रेत के साथ,

समुद्र के किनारे खड़े होना भी जद्दोजहद है,

ठीक वैसी ही, जैसी रोज होती है मेरे साथ,

दो वक्त की रोटी कमाने के लिए,

चुकाने पड़ते हैं, कई वक्त की रोटियों के दाम,

23/7/2015

अरुण कान्त शुक्ला

नाम : अरुण कान्त शुक्ला, ३१/७९, न्यू शान्ति नगर, पुराणी पाईप फेक्ट्री रोड, रायपुर, परिचय : ट्रेड युनियन में सक्रिय था, भारतीय जीवन बीमा निगम से पांच वर्ष पूर्व रिटायर्ड , देशबंधु, छत्तीसगढ़ में लेखन, साहित्य में रुची, लेखों के अलावा कहानी, कविता, गजल भी लिखता हूँ,, मोबाइल नंबर : 9425208198 ईमेल पता : shukla.arunkant@gmail.com

One thought on “बेवफा लहरें

  • विजय कुमार सिंघल

    सुंदर कविता !

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