गीतिका/ग़ज़ल

कोई बात हो तो कैसा हो

तोड़ के ये खामोशियाँ , कोई बात हो तो कैसा हो
यूँ अज़नबी से अगर हमसफ़र हो जाएँ तो कैसा हो

इस मस्त बरखा में,तेरा आँचल भी लहराये तो कैसा हो
बरसो से है दिल बंजर, तेरा प्यार बरस जाए तो कैसा हो

लंबी तन्हा जिंदगी से क्या,गर ये एक रात की हो तो कैसा हो
मौत चाहता हूँ अब मैं,पर जहर तेरे इश्क का हो तो कैसा हो

गिरा दीवार दुनिया की ,मेरे और करीब आओ तो कैसा हो
टकरा जाएँ लब से लब, हो ये भी गर इत्तेफाक तो कैसा हो

तोड़ दूँ बोतल अभी,तू अपनी आँखों से पिलाये तो कैसा हो
शुरू कंही से भी हो कविता मेरी, ख़त्म तुझ पर हो तो कैसा हो

-केशव

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?