संस्मरण

मेरी कहानी – 46

फगवारे आ कर हम कुछ आज़ाद से महसूस करने लगे थे। ऐसा तो नहीं था कि हमें घर में कोई तकलीफ थी, बस यों ही सभी दोस्त इकठे रहने के कारण मस्ती करने के लिए आज़ाद थे। जब जी चाहता हम फिल्म देखने के लिए चले जाते, जब जी चाहता शहर में घूमने निकल जाते। बाजार में कितनी भी भीड़ क्यों न हो हम साइकलों पर बैठे रहते और घंटीआं बजाते बजाते आगे बढ़ते जाते। हम जवान हो रहे थे लेकिन किसी लड़की को कुछ कहना, आ बैल मुझे मार कहने जैसा ही होता था। आज जब मैं उस वक्त और इस वक्त का मुकाबला करता हूँ तो हम बहुत सभ्य थे। लड़किआं भी किताबें हाथ में लिए बहुत सलीके से चलती थीं। अच्छे आचरण की अगर मैं इंतहा कहूँ तो कोई अतकथनी नहीं होगी। किसी लड़की को बुलाना मुसीबत मोल लेना होता था। स्कूल के बाद चार साल कालज में भी बिताये लेकिन कभी ऐसी बात सुनी ही नहीं थी कि किसी लड़की के सम्बन्ध किसी लड़के के साथ हों। हम चारों दोस्तों में मैं सब से शरीफ होता था। जीत और भजन तो लड़ने में भी आगे होते थे लेकिन सब से तगड़ा होने के बावजूद मैं लड़ने से हिचकचाता रहा था, हाँ यह बात जरूर है कि मैं सब का साथ दे देता था लेकिन आगे कभी नहीं हुआ था। कोई शरारत करनी होती थी तो पहले भजन और जीत के दिमाग से ही निकलती थी। बहादर भी तकरीबन मेरे जैसा ही था।

एक दिन भजन और जीत ने प्रोग्राम बनाया कि रात के समय खेतों से मूलीआं उखाड़ी जाएँ। सैंट्रल टाऊन के कुछ ही दूर पर सब्ज़िओं के खेत थे। स्कूल का काम खत्म करने के बाद हम चारों दोस्त दस गिआरा वजे रात को खेतों की ओर चल पड़े। कुछ ही दूरी पर खेत ही खेत थे। यह खेती की ज़मीन शहर के नज़दीक होने के कारण किसान सब्ज़ियाँ ही बीजते थे. चाँद की रौशनी ट्यूब लाइट की लौ जैसी लग रही थी। सब कुछ दिखाई दे रहा था। सफ़ेद रंग की मूलीआं ऊपर से ही दिखाई दे रही थी। बहुत दूर तक हम ने गौर से देखा कि कोई देख ना रहा हो। जब हमें यकींन हो गिया कि कोई खतरा नहीं था, तो जीत एक मूली उखाड़ कर बोला, ” वाहेगुरु “. इस पर सभी धीरे धीरे हंसने लगे। गाजरें उखाड़नी कुछ मुश्किल थीं, फिर भी हाथों और चाक़ू से ज़मीन कुरेद कर थोह्ड़ी बहुत गाजरें निकाल ही लीं। कुछ फूल हम ने फूल गोभी के चाक़ू से काटे और वापस चल पड़े। रास्ते भर में हम चारों ओर देखते रहे क्योंकि हम चोर थे और चोर को डर तो होता ही है। जल्दी जल्दी हम अपने कमरे की ओर जा रहे थे। कमरे में आ कर हम ने मूलीआं और गाजरें धोईं और नमक लगा कर मूलीआं खाने लगे।

क्या मूर्खता थी हमारी ? गाँव में सभी के खेत थे, बहादर की तो इतनी ज़मीन थी कि गाँव का एक हिस्सा ही उन का था, फिर भी यह मूलीआं और गोभी की चोरी ! आज तक मुझे इस बात का दुःख है। बुराई हमेशा बुराई ही होती है चाहे मज़ाक में ही कियों न की हो। कुछ हफ्ते बाद हम फिर खेतों में चले गए। अभी हम ने बैंगन और मूलीओं को हाथ लगाया ही था कि किसी तरफ से एक कुल्हाड़ी आ कर हमारे नज़दीक आ कर गिरी और साथ ही यह शोर कि पकड़ लो !पकड़ लो! होने लगा। भजन चीख उठा, मर गए ओए काट दी टांग। जिधर मुंह आया हम भागने लगे। भागने में हम तेज थे और टाऊन हाल की तरफ भागने लगे। टाऊन हाल आ कर एक दूसरे को पूछने लगे कि किसी को चोट तो नहीं लगी थी। भगवान का शुक्र था कि सब सही सलामत थे। हम ने दूर का चक्कर लगाया और कमरे में आ कर सुख का सांस लिया। मन ही मन में मैं तो डरा हुआ था और आज तक यह गुनाह मन में लिए बैठा हूँ और सच कहूँ तो आज अपनी कहानी में पहली दफा यह लिख कर कुछ हल्का महसूस कर रहा हूँ। इस के बाद हम ने यह काम छोड़ दिया और अपनी स्टडी में मसरूफ हो गए।

एक दफा मैं ने एक कहानी में लिखा था की दसवीं के इम्तिहान के पहले हमारे कमरे में चोरी हुई थी। अब मुझे याद आया कि दरअसल यह चोरी इसी कमरे में नौवीं जमात के एग्जाम से पहले हुई थी। पंजाबी में एक कहावत है ” चोरों पर पड़ गए मोर”. हम ने तो चोरी की थी सब्ज़िओं की लेकिन एक दिन हमारे ही कमरे में चोर आ कर हमारा सामान ले गए। एक दिन जब हम स्कूल से वापस आये तो हमारे कमरे का ताला टूटा हुआ था। जब हम कमरे के भीतर गए तो देखा कि चोर हमारा सामान लूट कर ले गए थे। हमारा रेडिओ, प्राइमस का स्टोव, एक बाइसिकल, कुछ नए बूट, कुछ कपड़े और ट्रंकों से पैसे भी निकाले हुए थे। हमारे मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही रही थी क्योंकि हम को अभी तक मालूम ही नहीं था कि चोरी किया होती है। हम को कोई समझ नहीं आ रही थी कि हम किया करें, तभी सामने के मकान मालक तारा सिंह भचू जी आ गए। हम ने उन को सभ कुछ दिखाया तो वोह बोले कि हमें पोलीस को रिपोर्ट करनी चाहिए।

पोलीस का नाम सुन कर ही हमें कंपकंपी सी आ गई क्योंकि पोलिस का अकस ही कुछ ऐसा होता है। खैर हम पोलिस स्टेशन जिस को थाना बोलते हैं में चले गए। डरते डरते हम थाने के बड़े गोल दरवाज़े जिस पर पोलिस स्टेशन लिखा हुआ था के अंदर चले गए। आगे एक और बड़ा दरवाज़ा और साथ ही एक छोटा सा कमरा था। एक पुलिस मैन एक कुर्सी पर बैठा था, उस के सामने एक मेज़ था और मेज़ के ऊपर कुछ गंदे रैजिस्टर रखे हुए थे जिन की जिल्द लाल कपड़े की थी। हम उस के पास आ कर खड़े हो गए। बड़े रूखे स्वर में वोह बोला, ” क्या बात है भई ?”. भजन बोला, “हमारे कमरे में चोरी हो गई है “. पुलिस मैन बोला, “तुम को पता है किस ने की है ?”. हम ने सारी बात बताई और वोह लिखे जा रहा था लेकिन उस का रवैया ऐसा था जैसे हम उस का वक्त बर्बाद करने आये थे। सारी रिपोर्ट लिखने के बाद जीत ने या बहादर ने मुझे याद नहीं दस्तखत कर दिए। वोह सिपाही बोला, ” अगर चोरी का सामान मिल गिया तो तुम को मिलेंगे “.

अक्सर हम हर शुक्करवार को स्कूल से छुटी होने के बाद गाँव आ जाया करते थे और रविवार को वापस आ जाया करते थे और आते वक्त पराठे मक्की की रोटीआं साग या कोई सब्ज़ी ले आते थे। कुछ हफ्ते बाद ऐसे ही हम एक रविवार के दिन घर से बहुत कुछ खाने को ले कर चल पड़े। बहादर और भजन मीट के बहुत शौक़ीन थे। बहादर बोला, “यार आज तो मीट खाने को जी चाहता है “. हम प्रभात होटल की तरफ चले गए और वहां से हम ने मीट लिया। यहां एक बात और भी मैं लिखना चाहूंगा कि मैं मीट नहीं खाता था, हालांकि मेरे पिता जी मीट के बहुत शौक़ीन थे। एक दफा उन्होंने मुझे एक कौली में चिकन डाल कर दिया था और मुझे रबड़ जैसा लगा था और मैंने उसी वक्त खाना छोड़ दिया था। शहर आ कर सभी मीट खाते थे लेकिन मैं नहीं खाता था। तीनों दोस्त मुझे मीट खाने को कहते रहते थे लेकिन मैं रबड़ कह कर खाता नहीं था। भजन मुझे बहुत छेड़ता रहता था और मेरी मिमक्री करता रहता था। एक दिन मैं और बहादर अकेले प्रभात होटल गए और हम एक कैबिन में बैठ गए। बहादर ने कीमें की प्लेट का आर्डर दिया। जब कीमें की प्लेट आई तो बहादर मुझे बोला , ” गुरमेल ! बस एक ग्राही खा के देख “. तंदूरी रोटी के एक टुकड़े को मैंने कीमे में भिगो कर खाया तो मुझे इतना स्वादिष्ट लगा कि मैं कीमा खाने लगा। हम ने एक प्लेट और मंगवा ली और मैं उस में से भी बहुत कीमा खा गिया। बस यहीं से मेरा मीट खाना आरंभ हुआ।

मीट ले कर हम अपने कमरे में आ गए और स्कूल का काम करने में मसरूफ हो गए। अभी घंटा भी नहीं हुआ होगा कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। जब दरवाज़ा खोला तो बाहर दो पुलिस मैन, एक थानेदार और दो आदमी जिन के हाथों में हाथकड़िआं लगी हुई थीं खड़े थे । एक पुलिस मैन बोला, ” आप ने चोरी की रिपोर्ट लिखवाई थी, आप की चोरी मिल गई है और यह दोनों चोर हैं जिन्होंने आप के कमरे से सब कुछ चुराया था “. हम तो खुश हो गए कि अब हमारी चोरी हुई चीज़ें मिल जाएंगी। हम ने उन को अंदर आने को कहा और वोह सभी आ गए। अंदर आ कर थानेदार ने दोनों चोरों को गन्दी गालिआं देनी शुरू कर दीं और गरज कर बोला, ” बोलो हरामजादों कैसे की थी चोरी “. एक बोला, ” साहब हम देखते रहते हैं और जब विद्यार्थी स्कूल को चले जाते हैं तो कमरे का ताला तोड़ लेते हैं, जब हम ने इन के कमरे से चोरी की थी तो हम साइकल ले कर जीटी रोड पर चाचोकी की तरफ भाग रहे थे तो हमें छक हुआ कि पुलिस हमारा पीछा कर रही है, इस लिए हम ने कुछ सामान आगे जा कर चाचोकी वाली नैहर में फैंक दिया और जो बाकी बचा है वोह आप को दे दिया है “. फिर थानेदार हम से मुख़ातब हो कर बोला, ” ऐसा करना, कल को पुलिस स्टेशन आ कर अपना सामान ले जाना “. और इस के बाद वोह उठ खड़े हुए और जाने के लिए तैयार हो गए।

जब वोह चले गए तो हम बहुत खुश हो गए और रोटीआं और मीट खाने के लिए तैयार हो गए। तभी दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई। जब दरवाज़ा खोला तो एक सिपाही खड़ा था। वोह बोला, ” साहब सुबह के भूखे हैं, कुछ है आप के पास खाने के लिए ?” शायद उन को मीट की महक आ गई थी। हम ने उन को अंदर बुला लिया। कुछ ही मिनटों में वोह हमारे गाँव से लाये हुए पराठे, मक्की की रोटीआं, साग और प्रभात होटल का मीट खा गए और चले गए। हम को दुबारा प्रभात होटल को जाना पड़ा।

दुसरे दिन हम पुलिस स्टेशन गए और चोरी हुए सामान के बारे में पुछा तो एक पुलिस मैन बोला, “आओ और अपना सामान शनाख् कर लो “. जब हम पुलिस मैन के साथ गए तो हम चारों दोस्त एक दूसरे का मुंह देखने लगे क्योंकि हमारा कोई भी सामान वहां नहीं था। बहुत से पुराने बड़े बड़े इलैक्ट्रिक रेडिओ वहां पड़े थे जिन के पार्ट्स पीछे से निकाले हुए थे। स्टोव थे जिन के बर्नर निकाले हुए थे, पुराने जूते, पुराने कपडे पड़े थे लेकिन हमारी एक भी चीज़ वहां नहीं थी। निराश हुए हम कमरे से बाहर आ गए। पुलिस मैन ने एक पहले से लिखा हुआ पेपर दिया और कहा कि इस पर हम साइन कर दें लेकिन हम से पड़ नहीं हुआ क्योंकि हमारी अंग्रेजी भी ऐसी वैसी ही थी। बहादर ने कहा कि हम अभी आते हैं।

बाहर आ बहादर कहने लगा कि इस पर लिखा समझ तो आता नहीं, ऐसा करते हैं कि हम कचहरी चलते हैं और वहां किसी से पूछ लेते हैं। जब हम कचहरी गए तो एक वकील जो बहादर को जानता था, आता दिखाई दिया। हम ने पेपर उन को पकड़ा दिया और पुछा कि उस पर किया लिखा था। वकील ने पड़ कर सुनाया, ” इस में लिखा है कि हमारी चोरी की सभी चीज़ें मिल गई हैं और हम पुलिस के शुकर्गुजार हैं “. हम ने सारी बात उस को बताई तो वोह हंसने लगा और कहा कि हम को रिपोर्ट लिखानी ही नहीं चाहिए थी। हम वापस पुलिस स्टेशन आ गए और उस पेपर पर दस्तखत करके पुलिस मैन को पकड़ा दिया। बाहर आ कर जीत ऊंची ऊंची हंसने लगा और कहने लगा, ” वकील की बात सही थी, अगर हम रिपोर्ट नहीं करते तो कमज़कम हमारे पराठे मक्की की रोटीआं और मीट तो बच जाते “. जोर-जोर से हम हंस रहे थे और लोग हमारा मुंह देख रहे थे।

चलता …..

2 thoughts on “मेरी कहानी – 46

  • Man Mohan Kumar Arya

    हार्दिक धन्यवाद श्री गुरमेल सिंह जी। आज की क़िस्त रोचक व अच्छी लगी। मूली, गाजर व गोभी की चोरी की, मन में भय पैदा हुआ। मनुष्य जब भी कोई गलत काम करता है तो आत्मा में भय, शंका व लज्जा उत्पन्न होती है। यह ईश्वर की प्रेरणा व सलाह होती है कि यह काम गलत है, इसे मत करो। कुछ ही दिन बाद आपके यहाँ चोरी हो गई और आप परेशान हुवे। इस पर मुझे एक घटना याद आई। स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने अपनी आत्मा कथा में लिखा है कि एक बार उन्होंने दिल्ली में कुछ सामान ख़रीदा और अपने घर मॉडल टाउन जाने वाली बस में बैठ गए। टिकट नहीं लिया, सोचा कि यदि कंडक्टर आ गया तो ले लेंगे अन्यथा नहीं। मॉडल टाउन आ गया। बस से उत्तर कर घर पहुंचे तो पता लगा कि वह अपनी छतरी और कुछ सामन बस में ही भूल आये हैं। टिकट के पैसे जो बचाये थे उससे अधिक नुकसान हो गया। ऐसी ही एक दूसरी घटना उनके जीवन में घटी। उन्हें सबक मिल गया और फिर जिंदगी भर उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया। मुझे यह घटना बहुत प्रेरणादायक लगती है। कथा के अन्य सभी विवरण भी रोचक एवं विचारणीय हैं। आभार।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      मनमोहन जी ,आज की किश्त को पसंद करने के लिए धन्यवाद . कुछ लोगों को एक आदत सी पड़ जाती है चोरीआं करने की लेकिन बहुत लोगों की फितरत में चोरी की आदत होती ही नहीं . अपने सुभाव से मैं चोरी कर ही नहीं सकता लेकिन उस समय जवानी की उम्र और ऐसे दोस्त जो डरते ही नहीं थे ,यह काम ना चाहते हुए भी हो गिया . एक बात सच है कि चोरी का भय दिल से जाता नहीं और जैसे आप ने दयानंद जी के बारे में लिखा है , हो सकता है कि टिकट के पैसे बचाते हुए ही एक भय के कारण जो उन के दिमाग में था ,अपनी ही चीज़ें भूल आये . हमारे कमरे में जो चोरी हुई वोह तो मूलिओं गाजरों से कहीं ज़िआदा थी . कुछ भी हो चोरी करना पाप है ,यह एक सच्चाई है .

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