गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका : एक विनम्र श्रद्धांजलि

सपूत मातृभूमि के, उठो कि माँ पुकारती ।
कलाम तुम चले कहाँ कि रो रही है भारती ।

नजर उठा के एक बार मुस्करा के देख लो ।
हर आँख आज नम हुई, तुम्हें ही है निहारती ।

उठो भरत की बेटियों, कलाम को करो विदा ।
सजा लो दीप थाल में, उतारो आज आरती ।

कर्म योगी बन जिया, नाम को अमर किया ।
कलाम हर युवा बने, प्रत्येक माँ विचारती ।

माँ की गोद में गिरा, माँ के वक्ष से लगा ।
जय कलाम जय मिसाइल मैन माँ उचारती

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

One thought on “गीतिका : एक विनम्र श्रद्धांजलि

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार !

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