कविता

बेटी का दर्द

में उडने के सपने संजोती रही,वो मेरे पंख काटते रहे।
मे चन्द खुशियां तलाशती रही,वो मुझे घांव बांटतें रहे॥
कुछ यूं दी जमाने ने, बेटी होने की सजा मुझे।
कि बेटों की फसल से ,जैसे खरपतवार छांटते रहे॥

सांसे तो क्या ,मेरी सोच तक पर पहरे बिठाऐं है
सदमें मे हूं, तमाम प्रतिबंध सिर्फ मेरे लिये क्यूं लगायें है।
समाज के ठेकेदारों से, पूछने की कोशिश तो बहुत की।
मगर यहां सबने ,चेहरे के ऊपर कई चेहरे लगाऐ है॥

यूं तो करते है मेरा पूजन भी, देवी बना आरती भी उतारते है
बहु चाहिये तो, बेटी की महिमा भी खूब विचारतें है।
पर इस पुरुष प्रधान समाज मे, उसी मात्र शक्ति को
कभी तेजाब से जलातें है, कभी दहेज की खातिर मारतें है॥

ना मेरी सोच अपनी है, ना मेरे सपने सपने है
जो जिम्मेदार है मेरी इस हालत के, वो मेरे खास अपने है।
जन्म से लेकर जाने तक, मेरी बस यही कहानी है
इस घर भी गम के आंसू है, उस घर भी दर्द का पानी है॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.