कविता

कविता

मैं
निरन्तर
टूट टूटकर , फिर
जुड़ने वाली
वह चट्टान हूँ
जो जितनी बार टूटती है
जुड़ने से पहले
उतनी ही बार
अपने भीतर
कुछ नया समेट लेती है
में चाहती हूँ
की
तुम मुझे
बार -बार तोड़ते रहो
और
में फिर जुड़ती रहूँ !!

डॉली अग्रवाल

पता - गुड़गांव ईमेल - dollyaggarwal76@gmail. com

One thought on “कविता

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह वाह ,किया बात है ,बहुत खूब .

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