“चलने के खातीर”
उठता हूँ गिरता हूँ चलने के खातीर पढता हूँ लिखता हूँ चलने के खातीर निगाहें लगी सिर्फ मंजिल डगर पर
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Read Moreपप्पूजी की बीमारी मेरी साली राधा (गुड़िया) का विवाह हो चुका था, परन्तु दुर्भाग्य से उसके कोई सन्तान नहीं थी।
Read Moreअज्ञान में जग भासता, अणु -ध्यान से भव भागता; हर घड़ी जाता बदलता, हर कड़ी लगता निखरता ! निर्भर सभी
Read Moreनारी को मत समझो अबला , नारी सदा रही हैं सबला , क्यों पड़े हो इसके पीछे , आपने को
Read Moreबरसात का मौसम है पानी टपक रहा है शीतलता मिल रही है आनन्द आ रहा है बारिश के बुन्दों से
Read Moreलोग दुनिया जीत लेते हैं ऊँचा उड़ते हैं गगन से, मैं तो आज हार गयी हूँ अपने ही जीवन से।
Read Moreमेरे जैसे इंसान के लिए स्वजीवनी लिखना इतना आसान नहीं है क्योंकि अपनी कहानी लिखने के लिए सचाई लिखनी पड़ती
Read Moreसुर सुहाने उर रूहाने, आनन्द धारा ले चले; अज्ञात को कर ज्ञात मग, कितनी विधाएँ दे चले ! विधि जो
Read Moreभ्राता जी कभी कभी लुधियाने आते रहते। उनकी जुबानी मोहिनी की अच्छाई और शराफत सुनता तो बहुत अच्छा लगता। शाम
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