मुक्तक
बहुत खा ली खटाई अब मुझे अच्छी नहीं लगती। कि चीनी बिन मिठाई अब मुझे अच्छी नहीं लगती।। कि नेताजी
Read Moreड्राइवर रवीन्द्र सिहं फिर हमने एक रवीन्द्र सिंह नाम के ड्राइवर को रखा, जो मोना सिख था। वह पहले से
Read Moreजाने किस तलाश मे थी, वो खामोश आंखें सोच रही थी अपने अतीत के बारे मे, या सहमी थी भविष्य
Read Moreहे! विधना तूने किया, ये कैसा इंसाफ। निर्दोषों को है सजा, पापी होते माफ।1। कैसे देखें बेटियाँ, बाहर का परिवेश।
Read Moreयूं धर्मो के नाम पर, गर हम बंटे ना होते ये मंदिर,ये मस्जिद के झगडे ना होते। बेगुनाहों का खून
Read Moreओ३म् आज से लगभग 140 वर्ष पूर्व हमारा समाज अज्ञान व अन्धकार से आवृत्त तथा रूढि़वादी परम्पराओं में जकड़ा हुआ
Read Moreहे महान आत्मा ! आपको शत-शत नमन!! अंततः आठ दशकों की यह अनवरत यात्रा थम ही गई आप भी हो
Read Moreपंच कर रहे प्रपंच, जनता त्राहि त्राहि करे। भारती का दर्द भला, कौन हरे कौन हरे।। धर्म कर रहा विलाप,
Read Moreज़िंदगी से मौत बोली, ख़ाक हस्ती एक दिन जिस्म को रह जायँगी, रूहें तरसती एक दिन मौत ही इक चीज़
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