कविता

आँखों को और ख्व़ाब मत दिखाओ 

इन आँखों को और ख्व़ाब मत दिखाओ,
तल्ख ही सही इन्हें हकीकत तो बताओ ।
ये मुल्क अब चंद लोगो की मिलकियत है,
गरीबों को मुल्क का मालिक तो न बताओ।
तुम जितने चाहे और झूठ बहकाओ,
हमारे घर-बार खेत-खलिहान लूट के ले जाओ,
हम मुंह खोलें तो गोलियां चलवाओ,
हमारी इज्जत से खेलो,गांवों को श्मशान बनाओ,
हम दर्द से कराहते रहें तुम और जुल्म ढहाओ,
पर अब ये घडियाली आंसू मत बहाओ ।
इन आँखों को और ख्व़ाब मत दिखाओ ,
तुम्हे हक है अपनी राजनीति चमकाओ ।
खूब जनता के साथ आके वक़्त बिताओ ,
अपना दामन दागदार सही,औरो पे लानत भेजो,
जब घर हमारे जलने लगे तुम हाथ सेंको,
खूब लूट करवाओ,न्याय का ढोंग रचाओ,
अपने साथियों को जेलों में मजे करवाओ,
जान चुके हम तुम्हें इस मुल्क से मुहब्बत नहीं है,
अपने पापों को दूसरों के दामन में मत छिपाओ ।
बहुत हो चुका अब कुछ तो रहम खाओ ,
इन आँखों को और ख्व़ाब मत दिखाओ ।

माधव अवाना