कविता

औरत के ख्वाब 

यकीनन तेरे भी तो ख्वाब होंगे,
तेरी उम्मीदें हिमालय से बड़ी होंगीं,
कहीं ये रस्म-ओ-रिवाज अड़े होंगे,
कहीं तेरी सामने उम्मीदें खड़ी होंगीं।
उम्मीद एक माँ की ,
मेरी बेटी अपने पँख नोच लेगी,
उम्मीदें एक बाप की ,
मेरी बेटी आगे की सोच लेगी,
उम्मीदें एक भाई की ,
मेरी बहन मुझसे ऊंचा कद न करेगी,
उम्मीदें दुनिया जहां की,
औरत अपनी पार न हद करेगी,
उम्मीदें एक शौहर की,
मेरी बीवी कभी मुँह से कुछ ना कहेगी,
घर के सारे काम काज ,
आख्रिर सांस तक बिना थके करेगी,
इतनी उम्मीदों की सलाखों से बने,
अटूट से कफस में कैद,
तेरे अपने बारे में विचार ढह गए होंगें,
तेरे ख्वाब तेरी आँखों से अश्क बनके ,
मैं जानता हूँ,कब के बह गए होंगे,
पर मैं हामी हूँ,
तेरा ख्वाब ,तेरी चाहतें,
और तेरा खुद पे अख्तियार हो,
तेरे साथ कदम मिलाकर चलने को,
आदमजात तैयार हो,
तेरी मुहब्बतों के सबक पढाये जाएँ,
दुनिया को नयी तालीम दी जाये,
किसी के दुःख पर पिघलना सिखाया जाए,
माओं की पाक मुहब्बत दिखाई जाए,
बहनों के दुलार पढाये जाएँ,
कि औरत के सारे प्यार पढाये जाएँ ।