कविता

सावन ले आ मौनसून

सावन की ओ घटायें सुन
कहीं से तू ले आ मौनसुन
अपनी रुत की दिखा दे गुण
तुझे पौधे बुला रहे झूम-झूम

तेरी राह ताक रहे किसान
तेरे बिन सुन्ना खेत-खलिहान
पंछी सुना रहे हैं तान
फिका पड़ गया आसमान

मेढक भाई छुपाये हैं भाल
मछली रानी का भी बूरा हाल
सभी जीव हो गये बेहाल
साल क्या करेगा आकाल

अरे धूप हो गया मद्धम
बिजली चमकने लगी चमचम
पानी बरसने लगी झमझम
चलो बारिश में भिंजे आज हम।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।