आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 34)

मलेशिया-सिंगापुर-श्रीलंका भ्रमण (जारी…)

निर्धारित समय पर हम सिंगापुर पहुँच गये। वहाँ हमारा होटल लिटिल इंडिया नामक जगह पर मुस्तफा बिल्ंिडग के बिल्कुल सामने था। इस क्षेत्र में भारतीयों की अच्छी संख्या है, इसलिए इसे लिटिल इंडिया कहा जाता है। अच्छा साफ-सुथरा स्थान है। वहाँ उचित दामों पर खाने-पीने की सभी चीजें मिल जाती हैं। अच्छे खासे बाजार भी हैं, जिनमें चीनी माल की भरमार है। हमारा होटल अलग था और हमारे साथियों की व्यवस्था पास के दूसरे होटलों में की गयी थी।

मुस्तफा बिल्डिंग हमारे यहाँ के बिग बाजार या वाॅल मार्ट जैसा रिटेल स्टोर है। लेकिन इतना बड़ा है कि बिग बाजार उसके सामने बच्चा लगता है। उसमें सुई से लेकर फ्रिज, टीवी और फर्नीचर तक सब कुछ मिल सकता है। यहाँ तक कि सोने-चाँदी के गहने भी मिलते हैं। इस स्टोर पर हालांकि रेट कम नहीं हैं, लेकिन बाजार से अधिक भी नहीं हैं। हम उसमें काफी देर तक घूमते रहे और छोटी-मोटी चीजें खरीदीं।

अगले दिन हमें आधे दिन तक शहर घुमाया गया। वास्तव में केवल दूकानों पर घुमाया गया। उस दिन शाम को हम स्वतंत्र थे, इसलिए मुस्तफा बिल्डिंग तथा आस-पास के बाजार में खरीदारी करते रहे। हमने अगले दिन वहाँ से एक कैमरा भी खरीदा, जो काफी अच्छा है और भारत से कुछ सस्ता ही था। वैसे वहाँ इलैक्ट्राॅनिक्स के सामान की एक मशहूर दुकान है, जिसे दर्शन सिंह की दुकान कहा जाता है। वहाँ ऐसी चीजें बिना टैक्स के मिल जाती हैं, जिससे काफी सस्ती पड़ती हैं, लेकिन हमारी पसन्द का कैमरा वहाँ नहीं मिल पाया। इसलिए हमने मुस्तफा बिल्डिंग से खरीदा।

अगले दिन हमें सैंटोसा टापू जाना था, जो सिंगापुर का मुख्य आकर्षण है। बस से हमें मेट्रो रेल के स्टेशन तक पहुँचाया गया। फिर उस रेल से टापू तक पहुँचे। यह बहुत सुन्दर टापू है, जिसके अन्दर ढेर सारी दर्शनीय चींजें हैं, जैसे पानी से घिरी हुई सुरंग, जिसमें सब ओर मछलियाँ तैरती रहती हैं, डाॅल्फिन शो, लेजर शो, हाॅरर शो आदि। हम जो देख सकते थे, देख लिये। डाॅल्फिन शो देखकर बड़ा मजा आया। वे पानी में तरह-तरह के खेल करती हैं। अँधेरा होने पर लेजर शो देखा। वह भी हमें बहुत अच्छा लगा। लेजर शो का नाम तो बहुत सुना था, पर देखने का मौका पहली बार मिला। इस शो के बाद जिस तरह हम सेंटोसा गये थे, उसी तरह वापस आ गये।

सिंगापुर में ऊँची-ऊँची इमारतों की भरमार है। ऐसी तो क्वालालाम्पुर में भी नहीं हैं। कई बिल्डिंग देखने में बहुत सुन्दर लगती हैं। देखकर मन खुश हो गया। सफाई इतनी है कि आश्चर्य होता है। वैसे मैं टोकियो देख चुका हूँ। वह भी काफी सुन्दर है, पर सिंगापुर की बात ही कुछ और है। यहाँ का सांघी हवाई अड्डा दुनिया का सबसे सुन्दर हवाई अड्डा माना जाता है। यह बहुत बड़ा भी है। हमने वहाँ कई घंटे गुजारे और पूरा आनन्द उठाया। हमें वहाँ इंटरनेट की सुविधा भी मुफ्त मिल गयी।

सेंटोसा टापू देखने के अगले दिन सुबह लगभग 11 बजे हमें कोलम्बो होते हुए त्रिवेन्द्रम जाना था। हम सिंगापुर के प्रमुख चिह्न मेरीलायन को पास से नहीं देख पाये थे, उसे केवल दूर से देखा था। यह मछली के धड़ और शेर के सिर का मिला-जुला रूप है, जिसके मुँह से लगातार पानी की धार निकलती रहती है। यह सिंगापुर के बंदरगाह के पास एक पार्क में बड़े आकार का बना हुआ है। मेरा मन उसको पास से देखने का था। मैंने नक्शा देखा तो पता चला कि वह हमारे होटल से केवल 2-3 किमी दूर है। बच्चे और श्रीमती जी सुबह देर से उठते हैं। अतः उनको सोता छोड़कर बिना बताये मैं अकेला ही कैमरा लेकर सुबह 7 बजे ही निकल पड़ा। नक्शे की सहायता से मैं किसी से पूछे बिना केवल 45 मिनट में वहाँ पैदल ही पहुँच गया। वहाँ एक जोड़ा पहले से आया हुआ था। मैंने उनसे ही अपने कैमरे से अपने फोटो खिंचवाये। कुछ फोटो खुद भी खींचे। फिर पूछता हुआ लौटा। पहले मैंने मेट्रो से आने की सोची, लेकिन मेट्रो स्टेशन में नीचे जाकर भटक गया। इसलिए फिर ऊपर आकर एक सिटी बस से लौटा, जिसने मुस्तफा बिल्डिंग के पास उतार दिया। ठीक सवा नौ बजे मैं होटल पहुँच गया। श्रीमती जी तब तक उठ गयी थीं और परेशान हो रही थीं। लेकिन मैं समय से पहुँच गया और नाश्ता भी किया, जो 10 बजे तक ही मिलता है।

वैसे सिंगापुर में कई चीजें हम नहीं देख पाये। विशेष रूप से नाइट सफारी देखनी चाहिए थी। पर हमें इसकी जानकारी नहीं थी और न इसके लिए पर्याप्त समय था। इसलिए छोड़ देना पड़ा।

ठीक समय पर हमारी टैक्सी आ गयी और हम फिर सिंगापुर के हवाई अड्डे पर पहुँच गये। वहाँ से कोलम्बो की फ्लाइट भी समय से मिल गयी। त्रिवेन्द्रम की उड़ान सुबह के समय थी, इसलिए रात भर के लिए हमें एक साधारण से होटल में भेजा गया। वहीं साधारण खाना भी मिला। अगले दिन प्रातः की उड़ान से हम त्रिवेन्द्रम हवाई अड्डे पर उतरे।

त्रिवेन्द्रम में हमें अपने लोकल ट्रांसपोर्ट और होटल की व्यवस्था स्वयं करनी थी, क्योंकि यह पैकेज में शामिल नहीं थी। अतः हमने कोवलम समुद्र तट के पास होटल लेना तय किया। वहाँ कई छोटे-बड़े होटल देखने के बाद एक होटल पसन्द आया। उसमें सब ठहरे। वह दिन हमने समुद्र तट पर टहलते हुए और त्रिवेन्द्रम शहर में खरीदारी करते हुए बिताया। अगले दिन हमारे साथियों को दिल्ली होते हुए वापस जाना था, जबकि हमने कन्याकुमारी घूमने का कार्यक्रम बना रखा था। इसके लिए हमने एक टैक्सी तय कर ली।

उस टैक्सी में हम रास्ते के दो-तीन मन्दिर देखते हुए कन्याकुमारी पहुँचे। वहाँ तीन समुद्र- हिन्द महासागर, गंगा सागर (बंगाल की खाड़ी) और सिन्धु सागर (अरब सागर) एक साथ मिलते हैं। वहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों ही देखे जा सकते हैं। पर हम तो दिन के समय गये थे और रात में नहीं रुके थे, इसलिए ये दृश्य देखने का अवसर नहीं मिला।

वहाँ समुद्र में एक बड़ी सी चट्टान पर स्वामी विवेकानन्द का सुन्दर सा स्मारक बना हुआ है। स्वामी विवेकानन्द की बड़े आकार की मूर्ति भी है। स्वामीजी ने सर्वधर्म सम्मेलन में अमेरिका जाने से पहले उस शिला पर ध्यान किया था और वहीं उन्हें अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस का मार्गदर्शन मिला था। स्मारक तक एक बड़ी मोटरबोट (या जेट्टी) में जाते हैं और एक या डेढ़ घंटे बाद उसी से वापस आते हैं। स्मारक बहुत बड़ा और आकर्षक है। उसमें ध्यान करने के लिए भी एक कक्ष बना हुआ है, जहाँ बिल्कुल शान्ति रहती है। हमें स्मारक में जाकर बहुुत अच्छा लगा।

शाम तक हम वापस कोवलम आ गये और समुद्र तट पर भी टहलने गये। वैसे कोवलम का तट हमें बहुत अच्छा नहीं लगा। वहाँ घूमने की जगह कम है और गन्दगी भी है। पानी भी साफ नहीं है। रेत एकदम काली है। इसकी तुलना में गोवा, चेन्नई आदि के समुद्र तट बहुत सुन्दर हैं।

अगले दिन हम निर्धारित समय पर त्रिवेन्द्रम से पुनः कोलम्बो पहुँचे। श्रीलंका एयरलाइन की एयर होस्टेस (व्योम बालायें) यात्रियों के आते समय कहती थीं- ‘आयुबोवान’। इसका अर्थ शायद उनकी सिंहली भाषा में ‘स्वागतम्’ होता है। अधिकांश यात्री इसके उत्तर में अंग्रेजी में ‘थैंक्यू’ कहते हैं। लेकिन मैं हमेशा शुद्ध हिन्दी में ‘धन्यवाद’ कहता था, जिसको कोई लड़की समझ नहीं पाती थी। लेकिन एक लड़की यह शब्द समझ गयी। वह शायद कभी भारत में रही होगी या किसी से सीख लिया होगा। इसको समझते ही वह एकदम खुश हो गयी और मुस्करा पड़ी। यह देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा।

हम कोलम्बो तो समय से पहुँच गये, लेकिन वहाँ से दिल्ली की उड़ान रात के समय थी। इसलिए हमें दिन भर के लिए एक अच्छे होटल में ले जाया गया, जो कोलम्बो से लगभग 12 किमी दूर समुद्र के किनारे एक रमणीक स्थान पर था। होटल अच्छा था और जलपान तथा भोजन भी। दोपहर को थोड़ा सोने के बाद हम समुद्र तट पर टहलने निकले। वहाँ काफी भीड़ थी। वहाँ से थोड़ी दूर कुछ लड़के पतंगें उड़ा रहे थे। सूर्यास्त हो रहा था। सारा वातावरण बहुत आनन्ददायक था। हमने सूर्यास्त का दृश्य देखा और कैमरे में भी कैद किया।

ठीक शाम को 7 बजे हमें लेने टैक्सी आ गयी और हम फिर कोलम्बो हवाई अड्डे आ गये। लेकिन कोलम्बो से दिल्ली की फ्लाइट, जो श्रीलंका एयरलाइन की थी, रद्द हो गयी थी। कोलम्बो हवाई अड्डे पर एयरलाइन वालों ने हमसे कहा कि आपकी दूसरी व्यवस्था की जायेगी, लेकिन समय लगेगा। मजबूरी में हम इंतजार करने लगे। वहाँ काफी ठंड थी। कम्बलों की संख्या भी पर्याप्त नहीं थी। उस पर तुर्रा यह कि खाने-पीने के लिए कुछ नहीं दिया गया। बड़ी मुश्किल से दिल्ली की उड़ान मिली। रात्रि देर से हम दिल्ली पहुँचे। चंडीगढ़ के लिए हमने शताब्दी एक्सप्रेस में आरक्षण करा रखा था, जो प्रातःकाल थी। इसलिए रात्रि को कुछ घंटे हवाई अड्डे पर ही बिता दिये और सुबह टैक्सी से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँचे। फिर वहाँ से चंडीगढ़ और पंचकूला।

हमारी यह विदेश यात्रा बहुत आनन्दप्रद रही। हमारे साथी काफी खुशमिजाज और मिलनसार थे। उनका साथ हमें अच्छा लगा और यात्रा में किसी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

4 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 34)

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते विजय जी। आपकी सपरिवार विदेश यात्रा का वृतांत रोचक एवं ज्ञान वर्धक है। त्रिवेन्द्रम की कोवलम बीच और कन्याकुमारी का हमने भी भ्रमण किया है। आपकी यात्रा से उनकी यादें भी ताजा हो गईं. आनंद, जिज्ञासाओं और अनुभवों से पूर्ण इस यात्रा का ज्ञान कराने के लिए आपको धन्यवाद एवं बधाई।

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार मान्यवर !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह वाह ,आप की यात्रा में हमभी शामल हो कर मुफ्त में ही सैर कर आये . आज की कथाबहुत अच्छी लगी .

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार भाईसाहब ! यह यात्रा वास्तव में बहुत आनंददायक रही।

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