बाल कहानी

कहानी – मुझको भी आज़ादी चाहिए

“देखो -देखो….दादी!  इसके कोमल-कोमल पंख,छोटी-सी चोंच।देखो ना दादी,, क्या आप नाराज़ हैं मुझसे? ” समीर ने अपनी दादी से कहा ।”हां नाराज़ हूं….कितनी बार तुझे मना किया है कि पक्षियों को इस तरह मत पकड़ा कर।इन्हें उड़ना अच्छा लगता है।भगवान ने इनको पंख इसीलिए दिए हैं ।”

“दादी,पर मैं तो इनका बहुत ध्यान रखता हूं  ?देखिए ना! कितनी सुन्दर छोटी-सी कटोरी में दाना भी है और पानी भी।”समीर ने कटोरी दिखाते हुए कहा।

“समीर बेटा मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ? ” चिन्ता करते हुए दादी ने कहा।समीर को पक्षियों से बहुत प्यार था,पर उस के प्यार करने के तरीके से उसकी दादी बहुत दुखी रहती थी।वह कभी चिड़िया,कभी कबूतर तो कभी तोते पकड़ कर पिंजरे में बंद कर देता था,लेकिन आज समीर ने जो गोरैया पकड़ी थी वह बहुत छोटी थी इसलिए पकड़ते समय जाल के तारों में अटक
कर जख्मी हो गयी थी।समीर ने उसके जख्मों पर मरहम लगाया और पिंजरे में दाना-पानी रख दिया ताकि जब उसे भूख प्यास लगे तो वह कुछ दाना चुग ले और पिंजरे को बन्द कर दिया।पर सुबह तक दाना-पानी वैसे का वैसा ही रखा रहा।चिड़िया की दशा देखकर ऐसा लगा जैसे उसने अनशन किया हुआ हो।समीर को यह देखकर बहुत गुस्सा आया।

पिंजरे के पास खड़ा होकर समीर बोला, लगता है तुमने खाने-पीने की हड़ताल की हुई है,देखता हूं कब तक नहीं खाओगी ? पिंजरे को खोलकर वह अपने हाथ से दाना खिलाने लगा ,लेकिन ये  क्या गोरैया ने तो अपना मुंह दूसरी ओर फेर लिया।जबरदस्ती खिलाने पर भी सब उलट  दिया। भूख के कारण व जख्मी होने के कारण उसकी दशा दयनीय हो गयी थी।

दादी ने समीर को एक बार फिर समझाते हुए कहा,”समीर तुम्हें किसी की आज़ादी छिनने का कोई हक नहीं ।जब हम सभी अपनी मरजी से जी ना चाहते हैं तो पशु -पक्षी क्यों गुलाम रहना चाहेंगे ।चाहे उन्हें कितने भी सुख, आराम, स्वादिष्ट खाना -पीना क्यों न मिले।पर वो सब छोड़ कर आजाद रहना चाहेगा चाहे पशु पक्षी ही क्यों  न हो।”

कुछ सोचते हुए दादी पुन: बोली,”समीर तुम्हें पता है हमने कितने वर्षों तक गुलामी झेली है?  स्वतंत्रता की हवा में  सांस लेने के लिए न जाने कितने भारतीय वीर जवानों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी,फांसी के फन्दों पर झूल गये थे।आज हम इस खुली हवा में जो सांस ले रहे हैं ना…वह सब हमारे जवानों  एवं पुरखों की वजह से ? उन्होंने कितने अत्याचार सहे।उनकी देशभक्ति व जोश देखकर ही फिरंगियों को हमारा देश छोडकर जाना पड़ा। इसलिये तुम भी सारे पिंजरे खोलो और पंछियों को आज़ाद कर दो।”

समीर ने दादी की बातों को अनसुना किया और पिंजरे में नया दाना-पानी रख कर स्कूल चला गया ।पर सारा दिन स्कूल में उसका मन नहीं लगा।बार- बार जख्मी चिड़िया का धयान आता रहा वह सोचता रहा कि पिंजरे में  रहना चिड़िया को क्यों नहीं अच्छा लगता, जबकि उसे बिना मेहनत के दाना-पानी सब मिल रहा है? वह जल्दी-से-जल्दी घर जाना चाहता था,पर छुट्टी से पहले तो नहीं जा सकता था।वह बेंच पर बैठे -बैठे ऊंघने लगा और मेज पर सिर टिका लिया।पता ही नहीं चला वह कब गहरी नींद में सो गया कि छुट्टी की घंटी सुनाई ही नहीं दी।क्लास के कुछ शरारती बच्चों ने परेशान करने के लिए कुछ देर के लिए बाहर से दरवाजा बन्द कर दिया।

लेकिन खेल खेल में  खोलना भूल गये और सभी अपने-अपने घर चले गये। थोड़ी देर के पश्चात् समीर की जब आंख खुली तो देखा कहीं कोई हलचल नहीं, वह घबराकर दरवाजे की ओर भागा ,पर यह क्या? दरवाजा तो बाहर से बन्द था।अब क्या करे? सहायता के लिए जोर -जोर से चिल्लाने लगा,पर वहाँ उसकी सहायता करने वाला कोई नहीं था।वह खिड़की खोल कर रोता  और चिल्लाता रहा।

घबराहट के कारण उसका गला भी सूखने लगा था।तभी उसे स्कूल का चपरासी मेन गेट बन्द करते हुए दिखाई दिया।समीर ने पूरी ताकत लगा कर आवाज लगाई।आवाज सुनकर चपरासी दौड़कर आया और दरवाजा खोलकर बाहर निकाला।वह कूछ पूछता इससे पहले ही उसने अपना बैग उठाया और घर की ओर दौड़ पड़ा।वह जल्दी-से-जल्दी घर पहंचना चाहता था ।उसे अहसास हो गया था कि सभी को आज़ादी क्यों प्यारी है।कैद भरी जिन्दगी कितनी डरावनी है।

घर पहुंचते ही बिना क्षण गंवाए उसने छोटी चिड़िया के पिंजरे को खोला।चिड़िया को बाहर निकालकर प्यार से सहलाया,घावपर मरहम लगाया तत्पश्चात खुले में  छोड़ दिया।खुली हवा में सांस लेते ही चिड़िया की
आंखों में चमक आ गयी।एक के बाद एक सारे पिंजरे खोल दिए।माफी मांगते हुए बोला,”मुझे माफ कर दो,आज़ादी क्या होती है?उसकी क्या कीमत है?मुझे आज पता चल गया।अब मै कभी भी किसी पक्षी को पिंजरे में कैद नहीं करुंगा।” तोता व कबूतर भी उड़कर मुंडेर पर जाकर बैठ गये और कुछ देर बाद दोनों पंछियों ने ऊंची उडान भर ली।

तोते और कबूतर को उड़ते देखकर समीर की आंखे खुशी से नम हो गयी।यह देखकर दादी ने समीर को गले लगाया और प्यार करते हुए  आशीर्वाद की बौछार कर दी।समीर को आज दादी की कही बातों का सही अर्थ समझ आगया था कि ‘स्वतंत्रता हमारा जनमसिद्ध अधिकार है।’किसी को भी गुलाम बनाने का कोई हक नहीं  है।दादी बोली तुलसीदास जी ने भी कहा है ” पराधीन सपनेहूं सुख नाहिं।” समीर खुशी से दादी के गले लग गया।

सुरेखा शर्मा ( पूर्व हिन्दी /संस्कृत विभाग)

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा(पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग) एम.ए.बी.एड.(हिन्दी साहित्य) ६३९/१०-ए सेक्टर गुडगाँव-१२२००१. email. surekhasharma56@gmail.com

One thought on “कहानी – मुझको भी आज़ादी चाहिए

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी बाल कहानी !

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