सामाजिक

अंगहीन नहीं, अपाहिज वास्तव में वो है जिसका मन अपाहिज हो चुका हो

एक व्यक्ति समुद्र के किनारे स्थित एक ऊँची चट्टान से समुद्र में कूद कर आत्महत्या करने जा रहा था। तभी किसी ने पीछे से आकर उसको कस कर पकड़ लिया और मरने से बचा लिया। ये बचाने वाला व्यक्ति कोई महात्मा लग रहा था। उसने पूछा, ‘‘ भले आदमी ये क्या करने जा रहे थे?’’ व्यक्ति ने रोते हुए कहा, ‘‘ आपने मुझे मरने से क्यों रोका? मैं मरना चाहता हूँ।’’ ‘‘पर क्यों?’’ ‘‘क्योंकि मैं बहुत ही ग़रीब हूँ। मेरे पास कोई काम नहीं है। खाने को रोटी तक नहीं। ऐसी ज़िंदगी जीकर करूँ भी तो क्या करूँ?’’ उस व्यक्ति ने बड़े दुख के साथ कहा। महात्माजी ने कहा कि मैं तुम्हारी ग़रीबी दूर करवा सकता हूँ। कैसे? ‘‘बस तुम्हें सिर्फ़ अपने दोनों हाथ देने होंगे। उनके बदले मैं तुम्हें दो लाख रुपए दिलवा दूँगा और तुम आराम से रहना और खाना-पीना’’, महात्माजी ने कहा। व्यक्ति ने कहा कि ये कैसे संभव हो सकता है, अपने दोनों हाथ तो मैं किसी भी क़ीमत पर नहीं दे सकता।

‘‘तो फिर अपने दोनों पैर दे दो उनके बदले मैं तुम्हें चार लाख रुपए दिलवा दूँगा और तुम उनसे हर चीज़ ख़रीद कर आराम से रहना ’’, महात्माजी ने पुनः कहा। व्यक्ति ने कहा कि ये भी असंभव है। मेरे पैर बेशक़ीमती हैं और मैं किसी भी क़ीमत पर उन्हें नहीं बेच सकता। ‘‘चलो हाथ-पैर न सही अपनी दोनों आँखें दे दो उनके बदले में मैं तुम्हें पूरे दस लाख रुपए दिलवा दूँगा और तुम ऐश से ज़िंदगी बसर करना ’’, महात्मा ने एक बार फिर ज़ोर देकर कहा। अब तो उस व्यक्ति को गुस्सा आ गया और बोला, ‘‘पैसों के बदले में मेरे शरीर के बहुमूल्य अंगों को बिकवाकर आप मुझे अपाहिज बनाना चाहते हो? मेरी ग़रीबी का मज़ाक उड़ाना चाहते हो?’’ महात्माजी ने कहा, ‘‘इतना अमूल्य शरीर होते हुए तुम ग़रीब कैसे हुए? और जहाँ तक अपाहिज होने का प्रश्न है अपाहिज वो नहीं होता जिसके कोई अंग नहीं होता अपितु वास्तविक अपाहिज वो है जिसका मन अपाहिज हो चुका हो और जो परिश्रम करने के लिए अपने अंगों का सदुपयोग करने से बचता हो। तुम एक स्वस्थ व्यक्ति हो और तुम्हारे सारे अंग-प्रत्यंग सही-सलामत हैं तो तुम ग़रीब कैसे हुए?’’

यदि हम अपने चारों ओर नज़रें दौड़ाएँ तो पाएँगे कि तन और मन दोनों तरह के अपाहिज या विकलांग लोगों की कमी नहीं। जो स्वस्थ शरीर होते हुए भी मन से विकलांग या अपाहिज हैं वो स्वयं पर ही नहीं पूरे समाज पर बोझ हैं। लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं जिन्होंने शारीरिक रूप से अक्षम होते हुए भी वो कार्य कर दिखलाए जो सक्षम भी प्रायः नहीं कर पाते। हेलेन केलर, लुई ब्रेल, स्टीफन हाॅकिंग, बाबा आमटे, सुधा चंद्रन आदि ऐसे नाम हैं जिन्होंने सिद्ध कर दिया कि शारीरिक विकलांगता भी मनुष्य के विकास में बाधक व अभिशाप नहीं। हम चाहें तो अपने शारीरिक विकलांगता रूपी अभिशाप को वरदान में परिवर्तित कर सकते हैं। शारीरिक विकलांगता रूपी अभिशाप को वरदान में परिवर्तित करने के लिए ज़रूरत है तो एकमात्र जज़्बे और आत्मविश्वास की।

जिस व्यक्ति में स्वयं कुछ करने का जज़्बा और आत्मविश्वास नहीं, जिसमें मनुष्य की अपरिमित क्षमताओं पर विश्वास नहीं और जो सदैव निराशा व नकारात्मक विचारों से घिरा रहता है वही वास्तविक विकलांग है। शारीरिक नहीं, मनुष्य की मानसिक विकलांगता ही उसके विकास में सबसे बड़ी बाधा है। पिछले दिनों एवरेस्ट पर्वत पर सफलतापूर्वक चढ़ाई करके वाली एक पांव से वंचित हो चुकी अरुणिमा सिन्हा हों या 2006 में एवरेस्ट फतह कर चुके दोनों पैरों से विकलांग मार्क इंग्लिस हों या फिर जून 2015 में आइएफएस अधिकारी बनने वाली पहली नेत्रहीन महिला बेना जेफाइना हों या आईएएस बनने की इच्छा रखने वाली साठ प्रतिशत से भी अधिक डिसएबल्ड यूपीएससी टाॅपर इरा सिंघल हों ये सभी हमारे लिए अनुकरणीय व आदर्श होने चाहिएँ तभी हम सही रूप में मानसिक जड़ता अथवा विकलांगता से मुक्त हो सकेंगे।

— आशा गुप्ता

4 thoughts on “अंगहीन नहीं, अपाहिज वास्तव में वो है जिसका मन अपाहिज हो चुका हो

  • वैभव दुबे "विशेष"

    वाह बहुत सुंदर लेख..

    सच बोलोगे तो किसी की निगाहों में खटक जाओगे।
    नए विचार न होंगे तो बंज़र धरती सा चटक जाओगे।
    अगर चले हो सफर पे तो अवश्य लक्ष्य निर्धारित करो
    गर जो मंजिल ही नहीं पता तो राहों में भटक जाओगे।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कहानी के रूप में लेख बहुत अच्छा लगा .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    प्रेरक कहानी

Comments are closed.