कविता

खूबसूरत दिखने वाली बेरहम दुनिया …

भोली-भाली सी मासूम कली
लाड-प्यार और नाजों से पली
दुनियादारी की न थी उसे समझ
बेखौफ उड़ने की ख्वाहिश में
देखने दुनिया वो घर से निकली
देख हर चौराहे पर चकाचौँध
निरंतर आगे ही आगे बढ़ चली
सहसा एक मोड़ पर ठिठक गई
कुछ वहसी आँखे घूर रही थी
दौड़ना चाहती थी मुड़के वापस
पर तब तक बहुत देर हो चली थी
नोच नोच के बेदर्दी से काट खाया
हैवानियत का शिकार हो चली थी
तड़प रही थी उसकी मासुमियत
चीखी चिल्लाई बहुत गिड़गिड़ायी
क्रुरता की सारी हद पार हो चली थी
सुंदर दिखने वाली ये रंगीन दुनिया
बेरहम और संवेदनहीन हो चुकी थी
न सुन पाया कोई मासूम की पुकार
ये दुनिया अँधी और बहरी हो चुकी थी
कट चुके थे पर उसी नन्ही चिरैैया के
आखिर क्यूँ वो अकेली उड़ चली थी
दरिंदों के इस संगमरमरी शहर में
बेटी होने की सजा जो उसे मिली थी

…….. प्रवीन मलिक

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....

One thought on “खूबसूरत दिखने वाली बेरहम दुनिया …

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !

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