क्षणिका

क्षणिका

क्षणिका

खून से सींच उगाया है दरख़्त
उसकी कोई भी शाख़ हिला दो
फूल नहीं केवल लम्हे झड़ते हैं
लम्हों से निकाल कर इतिहास
तोड़-मरोड़कर हर अहसास
मेरे वतन के लोग लड़ते हैं।

–अनिता