गीत/नवगीत

बंजारा

जग से क्यूँ  है मोह बढ़ाता

कौन हुआ किसका बंजारा.

मिले काफ़िले उन्हें भुला दे

कौन साथ चलता बंजारा.

 

कौन रुका है यहाँ सदा को

कौन ठांव होता अपना है.

सभी मुसाफ़िर हैं सराय में

एक एक सबको चलना है.

पल भर हाथ थाम ले काफ़ी

सदा साथ सपना बंजारा.

 

अच्छा बुरा कौन है जग में

जो भी मिलता साथ उठाले.

कौन है अपना कौन पराया

जो भी मिलता गले लगाले.

छोड़ यहीं जब सब जाना है

क्यूँ है फ़िर चुनता बंजारा.

 

आज नहीं, न कल था तेरा

आने वाला कल क्या होगा.

मेंहदी रचा हाथ में कोई

इंतज़ार कब करता होगा.

थके क़दम पर नहीं है रुकना

नियति तेरी चलना बंजारा.

 

…कैलाश शर्मा

 

कैलाश शर्मा

केंद्रीय सचिवालय सेवा एवं सार्वजनिक बैंक में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य करने के पश्चात सम्प्रति सेवा निवृत. ‘श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)’ पुस्तक प्रकाशित. ब्लॉग लेखन के अतिरिक्त विभिन्न पत्र/ पत्रिकाओं, काव्य-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित. वर्ष के श्रेष्ठ बाल कथा लेखन के लिए ‘तस्लीम परिकल्पना सम्मान – २०११’.

One thought on “बंजारा

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह लाजवाब सृजन

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