बाल कहानी

बाल कहानी- विद्या का दान

बहुत समय पहले की बात है। दो सहेलियां थीं। एक का नाम रमा था और दूसरी का निशा था। दोनों घनिष्ठ मित्र थीं। अपना सुख-दुःख, परेशानियाँ, अच्छाइयाँ सब एक दूसरे को बतातीं। एक दूसरे के सुख दुःख की साथी थीं। दाँत कटी रोटी जैसी उनकी मित्रता थी।बचपन से एक दूसरे के साथ खेलीं, एक ही कक्षा में पढ़ीं, एक ही विद्यालय में पढ़ीं। एक ही कॉलेज में दोनों ने दाखिला लिया। सभी उनकी मित्रता को देख हैरान थे। कॉलेज के कुछ मित्र उनकी मित्रता को देख जलते थे, उनकी मित्रता तोड़ने की कोशिश भी की लेकिन सब व्यर्थ।

रमा और निशा दोनों ही साधारण घर की थीं किन्तु रमा के मुकाबले निशा तीव्र बुद्धि की मेधावी छात्रा थी।हमेशा से निशा रमा को पढ़ाई में सहायता करती, खुद पढ़ती फिर उसको पढ़ाती। रमा के घर के लोग पढ़ाई को अधिक महत्व नहीं देते थे। उसकी माँ कहती, “घर का काम सीख, ये पढ़ाई क्या काम आएगी। बस कॉलेज कर ले उसके बाद शादी करनी है।” रमा चिढ़ जाती और कहती, “आपको हर समय घर का काम और शादी ही नज़र आती है। मुझे निशा की तरह पढ़कर कुछ बनना है”।उसकी माँ रमा को घर के काम में उलझाये रहती लेकिन रमा पढ़ना चाहती थी इसलिए जब भी समय मिलता झट से निशा के घर भाग जाती और वहाँ पढ़ाई करती। निशा के माता पिता उसको पढ़ाई करने का पूरा समय देते क्योंकि वो पढाई के महत्व को समझते थे।

इस तरह दो साल बीत गए। दोनों कॉलेज के अंतिम वर्ष में पहुँच गयीं। जब परीक्षा पास आने लगी तो अचानक एक दिन रमा के पिताजी को दिल का दौरा पड़ गया। घर के लोग परेशान हो गए। अस्पताल में उनको भरती कराया गया। रमा घर और अस्पताल के चक्कर में ऐसी फँसी कि पढ़ने का वक़्त ही नहीं मिला।रमा के पिता की तबियत में सुधार नहीं हुआ और परीक्षा सर पर आ गयी। रमा घबरा गयी कि अब क्या होगा। कॉलेज का अंतिम वर्ष कैसे पास करेगी।निशा ने समझाया धीरज रखो और हिम्मत मत हारो। मैं तुमको पढ़ा दूँगी।

परीक्षा प्रारम्भ हो गयी। निशा परीक्षा के दिनों में भी निरन्तर रमा को पढ़ाती रही। दोनों ने परीक्षा दी। इधर रमा के पिता भी ठीक होकर घर आ गये। कुछ महीनों के बाद परीक्षा का परिणाम निकला। रमा पास हो गयी और निशा पूरे कॉलेज में अव्वल आई।निशा के घर बधाइयों का ताँता लग गया। अखबार वाले, टी.वी. वाले सब जगह निशा की प्रशंसा के पुल बंधने लगे। कॉलेज में जब अखबारवाले निशा का साक्षात्कार लेने आये तो उन्होंने निशा से पूछा, ” आपकी सफलता का राज़ क्या है ?” तो निशा ने उत्तर दिया,  “इसका श्रेय मेरी सखी रमा को जाता है क्योंकि उसको पढ़ाते पढ़ाते मेरी पुनरावृत्ति इतनी अच्छी तरह हुई कि मेरी सभी समस्याओं का निदान तो हुआ ही साथ ही मेरे मस्तिष्क में पढ़ा हुआ घर कर गया।”

अंत में निशा ने कहा, “ये सच ही कहा गया है कि विद्या वो अनमोल व अनोखा धन है जो खर्च करने से और बाँटने से बढ़ता है तथा न बाँटने से नष्ट हो जाता है।”

शिक्षा~~ विद्या का दान महादान है। माँ सरस्वती का अनमोल खजाना है।

नीरजा मेहता

नीरजा मेहता

नाम-----नीरजा मेहता ( कमलिनी ) जन्मतिथि--- 24 दिसम्बर 1956 वर्तमान/स्थायी पता-- बी-201, सिक्का क्लासिक होम्स जी एच--249, कौशाम्बी गाज़ियाबाद (यू.पी.) पिन--201010 मोबाइल नंबर---9654258770 ई मेल---- mehta.neerja24@gmail.com शिक्षा--- (i)एम.ए. हिंदी साहित्य (ii)एम.ए. संस्कृत साहित्य (iii) बी.एड (iv) एल एल.बी कार्यक्षेत्र-----रिटायर्ड शिक्षिका सम्प्रति-----लेखिका / कवयित्री प्रकाशन विवरण-- प्रकाशित एकल काव्य कृतियाँ-- (1) "मन दर्पण" (2) "नीरजा का आत्ममंथन" (3) "उमंग" (बाल काव्य संग्रह) प्रकाशित 23 साझा काव्य संग्रह---- क़दमों के निशान, सहोदरी सोपान 2, सहोदरी सोपान 3, भावों की हाला, कस्तूरी कंचन, दीपशिखा, शब्द कलश, भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ, भारत के प्रतिभाशाली हिंदी रचनाकार, काव्य अमृत, प्रेम काव्य सागर, शब्द गंगा, शब्द अनुराग, कचंगल में सीपियाँ, सत्यम प्रभात, शब्दों के रंग, पुष्पगंधा, शब्दों का प्याला, कुछ यूँ बोले अहसास, खनक आखर की, कश्ती में चाँद, काव्य गंगा, राष्ट्र भाषा हिन्दी सागर साहित्य पत्रिका। प्रकाशित 2 साझा कहानी संग्रह-- (1) अंतर्मन की खोज (2) सहोदरी कथा पत्र-पत्रिकायें--- देश विदेश के अनेकों पत्र- पत्रिकाओं व ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनायें। (शीघ्र प्रकाशित होने वाली संस्मरण पर आधारित एकल पुस्तक, 5 साझा काव्य संग्रह और 2 साझा कहानी संग्रह।) (3) सम्मान विवरण--- (1) साहित्य क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं /समूहों द्वारा कई बार सम्मानित---- काव्य मंजरी सम्मान, छंदमुक्त पाठशाला समूह द्वारा चार बार सम्मानित, छंदमुक्त अभिव्यक्ति मंच द्वारा पाँच बार सम्मानित, श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, साहित्यकार सम्मान ( दो बार प्राप्त हुआ ), भाषा सहोदरी हिंदी सम्मान (दो बार प्राप्त हुआ), साहित्य गौरव अलंकरण सम्मान, आगमन समूह द्वारा सम्मानित, माँ शारदे उत्कर्ष सम्मान , दीपशिखा सम्मान, शब्द कलश सम्मान, काव्य गौरव सम्मान (दो बार प्राप्त हुआ ), गायत्री साहित्य संस्थान द्वारा सम्मानित, नारी गौरव सम्मान, युग सुरभि सम्मान, शब्द शक्ति सम्मान, अमृत सम्मान, प्रतिभाशाली रचनाकार सम्मान, प्रेम सागर सम्मान, आगमन साहित्य सम्मान, श्रेष्ठ शब्द शिल्पी सम्मान, हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान, हिन्दी सागर सम्मान (संपादक सम्मान ), हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी द्वारा सम्मानित। (2) उपाधि---काव्य साहित्य सरताज उपाधि ( ग्वालियर साहित्य कला परिषद {मध्य प्रदेश}द्वारा प्राप्त ) (3) विद्यालय से भी दो बार शिक्षक दिवस पर "बेस्ट टीचर अवार्ड" प्राप्त हुआ है। (1997 और 2008 में

2 thoughts on “बाल कहानी- विद्या का दान

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सहमत हूँ विद्यादान से
    प्रेरक कथा

    • नीरजा मेहता

      विभा रानी श्रीवास्तव जी आपका हृदयतल से शुक्रिया।

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