कविता

हक़ीक़त

जब भी मैं समझता हूँ
बड़ा हो गया हूँ
अदना आदमी से,
खुदा हो गया हूँ
तो इतिहास उठा लेता हूँ
ये भ्रम खुद-ब-खुद टूट जाता है
मौत रूपी दर्पण में
सत्य का प्रतिबिम्ब दिख जाता है
मिटटी में मिल गए
जितने भी थे धुरंदर
क्या हलाकू-चंगेज़,
क्या पोरस-सिकंदर
जिन्होंने कायम की थी
पूरी दुनिया में हुकूमत
कहीं नज़र आती नहीं
आज उनकी ग़ुरबत
तो ऐ महावीर तुझे
घमंड किस बात का!
दुनिया-ए-फ़ानी में
भला तेरी औकात क्या?

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

One thought on “हक़ीक़त

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन

Comments are closed.