स्वास्थ्य

उल्टी की प्राकृतिक चिकित्सा : कुंजल क्रिया

कई बार जाने-अनजाने में हम ऐसी चीजें खा जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और जिनको हमारा शरीर (या पेट) स्वीकार नहीं करता। हमारा शरीर उस वस्तु को मुँह के रास्ते वापस फेंकने की कोशिश करता है। इसको हम उल्टी कहते हैं।

खाना बिगड़ जाने, कोई ज़हरीली वस्तु खा लेने या आवश्यकता से बहुत अधिक खा जाने पर प्राय: ऐसा होता है। कभी कभी लम्बी यात्रा करने या ऑक्सीजन की कमी से भी ऐसा होता है।

यदि किसी भी कारण से जी मिचलानरहा हो या/और उल्टी आ रही हो, तो उसे गोलियाँ देकर रोकना उचित नहीं है। इसका उचित समाधान है उस वस्तु को पेट से बाहर कर देना, जिसके कारण उल्टी आ रही है। इसके लिए आयुर्वेद की वमन क्रिया करनी चाहिए, जिसे कुंजल या कुंजर भी कहा जाता है।

कुंजल करने के लिए किसी छोटे भगौने में डेढ़ दो लीटर पानी गर्म कीजिए। जब वह पीने लायक गुनगुना हो जाये तो उसे उतारकर उसमें आधा चम्मच सेंधा या सादा नमक मिलायें। अब पंजों के बल (कागासन में) बैठकर तीन-चार-पाँच जितने गिलास पानी आप पी सकें गटागट पी जायें जब तक कि उबकायी न आने लगे।

अब आपको पेट पर बायाँ हाथ रखकर दबाते हुए सामने कमर से ९० अंश झुककर खड़ा होना चाहिए। फिर दायें हाथ की बीच की तीनों उँगलियाँ एक साथ मुँह में डालकर गले के काग को हिलाना चाहिए। ऐसा करने से मुँह से पानी निकलने लगेगा। ऐसा बार बार तब तक करें जब तक पानी निकलना बिल्कुल बंद न हो जाये। अगर अंत में कड़वा या खट्टा पानी निकले तो दो गिलास जल और पीकर यह क्रिया फिर से करनी चाहिए।

इसके बाद शवासन कर लेना चाहिए। यदि कुछ पानी पेट में छूट भी गया हो तो चिंता की कोई बात नहीं है। वह मूत्र के रूप में निकल जाएगा। यह क्रिया ५ साल या अधिक उम्र के बच्चों को भी बेखटके करायी जा सकती है।

विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

6 thoughts on “उल्टी की प्राकृतिक चिकित्सा : कुंजल क्रिया

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    बेहद उपयोगी लेख

  • मनमोहन कुमार आर्य

    बहुत अच्छा उपयोग एवं ज्ञानवर्धक लेख। सराहनीय कार्य। हार्दिक धन्यवाद।

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    ज्ञानवर्द्धक लेखन

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, बहिन जी !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी जानकारी .

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, भाई साहब !

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