गीत/नवगीत

इस प्यार की धरा का

इस प्यार की धरा का, सावन सरस बनों तुम।
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम।।

पलकें बिछाऊं अपनी, तेरी डगर में हमदम।
हरियाली कर दो तन मन, मुझे प्रेयसी वरो तुम….
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम….

प्यासा है मन का आंगन, प्यासा है प्रेम उपवन।
बन कर बरसता बादल, मुझे नव उमंग दो तुम….
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम…

पतझर सी जी रही हूं, उजडी बहारें लेकर
दे दो बहार मौसम , मुझे प्रेम रुत करो तुम..
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम…

आनंद छंद करदो, इस दिल की धडकनों को।
जीवन में उमंगो की, नव चेतना भरो तुम…
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम…

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.