कविता

कोई भूख से मरता है…

कोई भूख से मरता है
मैं सपनों की बात कैसे करुं।
वहां मौत का मातम है
मैं यहां रंगरास कैसे करुं।
होते होगें पत्थर के दिल उनके
जो मुस्कुरा लेते हैं औरों के रोने पर
मैं तो बस साधारण इंसान हूं
काबू मानवीय जज्बात कैसे करुं॥

लोग तो सैंकते हैं
लाशों पर भी रोटियां
लोग जज्बात को भी
व्यापार बना देते है।
लगी को बुझानें
भला अब कौन आता है
लोग तो बुझी को भी
कुछ और हवा देतें है॥

पार जाना है अगर
तो नाव भी बन और नाविक भी
क्योंकि इस दौर में
मांझी ही डुबो देते है।
अब भला भरोसा
कौन किस पर करे
अब तो कोख के जाये को ही
लोग खुद मार देते है॥

और कलयुग है ये
रामराज्य के सपने मत पाल
हकीकत को समझ
परम्परा के सिक्के मत उछाल
क्योंकि आज की दुनियां में
सब कुछ उलटा पुलटा है
खरे की कीमत यहां कोई नही जानता
और खोटा सिक्का
डंके की चोट पर चलता है॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “कोई भूख से मरता है…

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • सतीश बंसल

      शुक्रिया विजय जी…

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