कविता

“गीतिका”

सावन का श्याम झूला, डारी कदमा डारी
इक बार फिर झूला दों, श्यामल रास बिहारी
सखियां विवस खड़ी हैं, चितवत राह तुम्हारी
देखों भी श्याम आओं, आओं तनिक मझारी ||

मुरली की तान कान्हा, तरसत महल अटारी
सुध बुध बिसर रही है, तक गोवर्धन गिरधारी ||

महा माया मन-मन राचे, बोझिल जीवन धारी
पग पग नाचे ताता थैया, नाचे घर नर नारी ||

पीये जल जमुन जहरिला, तलफत मीन बिचारी
गाय-गोप जापत काधा, सुधि लो कृष्ण मुरारी ||

राग द्वेष उन्माद मह, इक आसन बलिहारी
भुल न जाना श्याम सखे, आस तुम्हरी भारी ||

यशुदा के आंखन तारे, राधा संग हितकारी
दर्शन तो दो घनश्याम, कह गीता अवतारी ||

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on ““गीतिका”

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर रचना सामयिक

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी

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